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कहानी- आज 30 नवंबर को सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानकदेवजी की जयंती है। गुरु नानक हमेशा घूमते रहते थे और अपने आचरण से ही शिष्यों को और समाज को सुखी जीवन के संदेश देते थे। उनके आशीर्वाद सभी को आसानी से समझ नहीं आते थे। जो लोग उन्हें जानते थे, सिर्फ वे ही उनकी बातों को समझ पाते थे। उनके आशीर्वाद बहुत सरल होते थे, लेकिन उनका अर्थ काफी गहरा रहता था।
एक बार गुरु नानक अपने शिष्यों के साथ किसी गांव में पहुंचे। उस गांव के लोग बहुत निराले थे। गांव के लोगों को गुरु नानक के बारे में मालूम हुआ तो सभी उनके डेरे पर प्रणाम करने पहुंचे। उस समय गुरु नानक ने लोगों के एक समूह को आशीर्वाद दिया कि 'बस जाओ' यानी यहीं रहने लगो।
कुछ देर बाद एक दूसरा समूह आया तो गुरुनानक ने उन्हें कहा कि 'उजड़ जाओ' यानी बिखर जाओ।
शिष्यों ने गुरु नानक से पूछा, 'ये कैसा आशीर्वाद है? एक समूह को आप कहते हैं बस जाओ और दूसरे समूह को कहते हैं उजड़ जाओ।'
गुरु नानक बोले, 'लोगों का जो पहला समूह आया था, उसके लोग अच्छे नहीं थे। सभी बुरे कामों में लगे रहते हैं। गलत लोग एक ही जगह रुक जाएं, तो अच्छा है। कम से कम समाज में बुराई नहीं फैलेगी। इसीलिए, मैंने उन्हें यहीं बस जाने का आशीर्वाद दिया। दूसरे समूह के लोग अच्छे थे इसलिए मैंने उन्हें उजड़ जाने का आशीर्वाद दिया, ताकि वे जहां जाएंगे अच्छाई फैलाएंगे और समाज का भला करेंगे।'
सीख- गुरु नानक का संदेश ये है कि हमें अच्छाई को फैलाना चाहिए और बुराई को एक ही जगह पर समेट देना चाहिए यानी खत्म कर देना चाहिए। इसी से हमारा और समाज का कल्याण होता है।
सत्या और ज्योति यूएस में रहते थे। सत्या वहां ई-कॉमर्स सेक्टर में नौकरी कर रहे थे। उनकी पत्नी ज्योति भी जॉब में थीं। कुछ साल बाद दोनों भारत वापस आ गए। उनका इरादा अपना फूड बिजनेस शुरू करने का था। दोनों ने शुरूआत किसी होटल या रेस्टोरेंट से करने के बजाय एक फूड ट्रक से की। आज उनके पास तीन फूड ट्रक हैं। सालाना टर्नओवर डेढ़ करोड़ पहुंच चुका है। बीस लोगों को नौकरी भी दे रहे हैं। सत्या ने अपने बिजनेस की कहानी भास्कर से शेयर की।
मास्टर्स करने यूएस गए, वहीं सीखा वैल्यू ऑफ मनी
सत्या कहते हैं- इंजीनियरिंग के बाद मैं मास्टर्स करने यूएस गया था। पढ़ाई के खर्चे के लिए कुछ लोन लिया था। लोन चुकाने के लिए मैंने पार्ट टाइम जॉब किया। यूएस में अपना सारा काम खुद ही करना होता है। न पैरेंट्स होते हैं, न रिश्तेदार। यही वह चीज होती है, जिससे हम जिदंगी को समझते हैं। वैल्यू ऑफ मनी को समझते हैं।
पढ़ाई के साथ पार्ट टाइम जॉब करते हुए मैं ये सब सीख रहा था। फिर ई-कॉमर्स सेक्टर में जॉब करने लगा। वहीं ज्योति से मुलाकात हुई और 2008 में हमारी शादी हो गई। शादी के बाद हम भारत वापस आ गए। ज्योति के पिता बिजनेसमैन हैं। वे लॉजिस्टिक सेक्टर में काम करते हैं, इसलिए ज्योति को ट्रांसपोर्ट, बस-ट्रक की अच्छी समझ थी।
ऑफिस के पास कोई दुकान नहीं थी, वहीं से आया आइडिया
भारत आने के बाद ज्योति जिस कंपनी में काम कर रहीं थीं, उसका ऑफिस ओखला में था। वहां आस-पास खाने-पीने की कोई शॉप नहीं थी। साउथ इंडियन खाना तो दूर-दूर तक नहीं मिलता था। ये देखकर ज्योति ने सोच लिया था कि जब भी काम शुरू करेंगे, यहीं से करेंगे। काफी रिसर्च करने के बाद हमने सोचा कि अपना फूड ट्रक शुरू करते हैं। क्योंकि, न इसमें ज्यादा इंवेस्टमेंट था और न बहुत बड़ी रिस्क थी। यह भी पहले ही सोच रखा था कि साउथ इंडियन फूड ही रखेंगे।
2012 में हमने एक्सपेरिमेंट के तौर पर पहला फूड ट्रक शुरू किया। एक सेकंड हैंड ट्रक खरीदा। अंदर से उसे बनवाया। अखबारों में विज्ञापन देकर एक अच्छा शेफ खोजा और काम शुरू कर दिया। ओखला में ही फूड ट्रक लगाया। उसमें साउथ इंडियन फूड ही रखा। पहले दिन से ही हमारा बिजनेस अच्छा चलने लगा। हमने जहां ट्रक लगाया था, वहां ज्यादातर ऑफिस थे। लोग खाने-पीने आया करते थे। लेकिन, दो महीने बाद बिजनेस एकदम से कम हो गया। कुछ ऑफिस बंद हो गए थे। कुछ लोग नौकरी छोड़कर चले गए थे।
समझ नहीं पा रहे थे कि ग्राहकों को कैसे जोड़ें
बिजनेस घट जाने के बाद हम समझ नहीं पा रहे थे कि नए ग्राहक कैसे जोड़ें। उस दौरान मैं जॉब कर रहा था, जबकि ज्योति जॉब छोड़कर फुलटाइम बिजनेस पर ध्यान दे रहीं थीं। हमारे मेंटर एसएल गणपति ने सलाह दी, 'तुम्हारा कोई होटल या रेस्टोरेंट तो है नहीं। तुम्हारा फूड ट्रक है। अगर ग्राहक तुम्हारे पास नहीं आ रहे, तो तुम ग्राहकों के पास जाओ।' उनकी एडवाइज के बाद हम एक संडे को उनके ही अपार्टमेंट में फूड ट्रक लेकर पहुंच गए। तीन घंटे में ही हमारा सारा सामान बिक गया।
अब हम समझ गए थे कि कैसे लोगों को अपने प्रोडक्ट से जोड़ना है। हमने और कई स्ट्रेटजी भी अपनाईं। मैं यहां उन्हें डिसक्लोज नहीं करना चाहता। हम अपने फूड ट्रक में घर जैसा टेस्टी खाना दे रहे थे। इसमें रवा डोसा, टमाटर प्याज उत्तपम, मेदुवडा, फिल्टर कॉफी, मालाबार पराठा जैसे आयटम शामिल थे। यह दिल्ली में आसानी से नहीं मिलते थे। हमारी इसमें स्पेशलिटी थी, क्योंकि हम साउथ इंडियन ही हैं।
सत्या ने बिजनेस ग्रोथ के लिए नौकरी छोड़ी
सत्या ने बताया- 2012 से 2014 तक हमारा बिजनेस ठीक-ठाक चला। घरवाले भी इसमें इन्वॉल्व हो चुके थे। 2014 में मैंने भी जॉब छोड़ दी, क्योंकि बिजनेस को ग्रोथ देने के लिए ज्यादा टाइम देना जरूरी थी। 2014 में ही हमने एक फूड ट्रक और खरीद लिया। अब हमारे पास दो गाड़ियां हो चुकी थीं। हमने बिजनेस के लिए नए एरिया भी एक्सप्लोर किए। जैसे, दिल्ली में केटरर बड़ी पार्टियों के ऑर्डर तो ले रहे थे, लेकिन छोटी पार्टियों के ऑर्डर कोई नहीं लेता था। हमने 30 लोगों तक की पार्टी वाले ऑर्डर भी लेना शुरू कर दिए। इससे हमारा कस्टमर बेस भी बढ़ा और अर्निंग भी बढ़ी। धीरे-धीरे शादियों में और कॉरपोरेट्स में भी सर्विस देने लगे।
अब हमारे तीन फूड ट्रक हो चुके हैं। हम 20 लोगों को नौकरी दे रहे हैं। दिल्ली के साथ ही गुड़गांव तक सर्विस दे रहे हैं। जल्द ही नोएडा तक अपना काम फैलाने वाले हैं। आखिरी फाइनेंशियल ईयर में टर्नओवर डेढ़ करोड़ पहुंच गया था। लॉकडाउन में जब लोग बाहर के खाने से डर रहे थे, तब हमने स्नैक्स के ऑर्डर लेना शुरू किए। पैकिंग करके इनकी डिलेवरी की।
सत्या ने कहा- जो भी बिजनेस में आना चाहते हैं, वे याद रखें कि शुरूआत में कई बार कामयाबी नहीं मिलती। इससे घबराकर काम करना न छोड़ें। बल्कि जो सोचा है, उसके पीछे लगे रहें। आपको सक्सेस जरूर मिलेगी।
दार्जिलिंग की पहाड़ियों से कंचनजंगा की सफेद बर्फ को देखने के लिए लोग देश के कोने-कोने से आते हैं। यहां की खूबसूरत घाटियां, पहाड़ी झरने, घास के मैदान, पहाड़ी ढलान और दूर तक दिखते चाय के बागान पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं। लेकिन कोरोना ने दार्जिलिंग की दिलकश वादियों और आंखों में बस जाने वाले नजारों से पर्यटकों को दूर कर दिया है। टी, टिंबर और टूरिज्म के लिए मशहूर दार्जिलिंग में चाय के नए बागान लग नहीं रहे हैं। टिंबर उद्योग दम तोड़ चुका है। टूरिज्म को कोरोना ने करीब-करीब खत्म ही कर दिया है।
दार्जिलिंग में हालात बेहद मुश्किल हो गए हैं। जंगलों में सैलानियों को घुमाने वाले लोग घर चलाने के लिए अवैध शिकार की तरफ भी मुड़ सकते हैं। गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन के असिस्टेंट डायरेक्टर टूरिज्म सूरज शर्मा कहते हैं, 'पहले के मुकाबले अभी 15-20% पर्यटक ही आ रहे हैं। अभी दशहरे के दौरान चार दिन कुछ टूरिस्ट आए, लेकिन ज्यादातर पश्चिम बंगाल के ही थे। बाहर के पर्यटक अभी नहीं आ रहे हैं।' शर्मा कहते हैं, 'कई महीने तो सबकुछ बंद रहा। अब होटल खुले हैं लेकिन 15-20% से ज्यादा बुकिंग नहीं है। जिन होटलों में 40 कमरे हैं, वहां 10 भी बुक नहीं हो पा रहे हैं।'
कनेक्टिविटी न होने से घटा टूरिज्म
ईस्टर्न हिमालयन ट्रेवल एंड टूरिज्म नेटवर्क के महासचिव सम्राट सान्याल कहते हैं कि पर्यटकों के नहीं आने की एक बड़ी वजह कनेक्टिविटी का पूरी तरह बहाल ना हो पाना भी है। सान्याल कहते हैं, 'ट्रेन और फ्लाइट पूरी तरह ऑपरेशनल नहीं हैं। जो पर्यटक अभी आ रहे हैं, वे पश्चिम बंगाल से ही हैं। 2019 के मुकाबले हमारा बिजनेस 80-90% तक डाउन है।'
एसोसिएशन फॉर कंजर्वेशन एंड टूरिज्म के कन्वेनर और पश्चिम बंगाल और सिक्किम के पर्यटन सलाहकार राज बासू कहते हैं कि बीते साल के मुकाबले पर्यटन 80% तक कम है। बासू कहते हैं, 'उत्तर बंगाल और सिक्किम में सीधे तौर पर 10 लाख लोग पर्यटन उद्योग से जुड़े हैं। पर्यटन के सीजन के दौरान होने वाले टर्नओवर का एक फीसदी भी हम हासिल नहीं कर पाए हैं। हम नहीं जानते कि अब हम सर्वाइव कर पाएंगे या नहीं।'
सूरज शर्मा बताते हैं, 'दार्जिलिंग में ही सीधे तौर पर 8 से 10 हजार कर्मचारी प्रभावित हुए हैं। बहुत लोगों की नौकरी चली गई है। जो नौकरी पर हैं, उन्हें भी तीस फीसदी तक ही सेलरी मिल रही है। जिसे पहले 10 हजार मिलते थे, उसे 3 हजार रुपए ही मिल रहे हैं।' सम्राट सान्याल कहते हैं, 'अभी तक किसी तरह 25-30% सेलरी दी जा रही है। अगर चीजें ठीक नहीं हुईं, तो 50% लोगों को पूरी तरह नौकरी से निकाला जा सकता है।'
छोटे काम-धंधे वाले सबसे ज्यादा परेशान
बासू कहते हैं, 'लोग अपने टैक्स नहीं भर पा रहे हैं। बिजली के बिल नहीं भर पा रहे हैं। यहां तक की रोजमर्रा के खर्च पूरे नहीं कर पा रहे हैं। जो स्थानीय लोग गाड़ी चलाते थे या छोटे-छोटे लॉज चलाते थे, वे सबसे ज्यादा परेशान हैं। बड़े होटल किसी तरह अपना काम चला पा रहे हैं। छोटे काम-धंधों वालों के हालात ऐसे हो गए हैं कि लोग गाड़ियां और लॉज बेच रहे हैं या इस बारे में सोचने लगे हैं।'
गोरूमरा नेशनल पार्क में अधिकारियों से चर्चा करने आए राज बासू कहते हैं, 'जंगल में पर्यटन से जुड़े अधिकतर लोग सेलरी पर काम नहीं करते हैं। गाइड या जीप सफारी कराने वालों की इनकम टूरिस्ट से ही जुड़ी है। फॉरेस्ट अधिकारियों का कहना है कि इन लोगों के बेरोजगार होने से जंगल पर दबाव बढ़ेगा। ऐसे लोग अवैध शिकार और जंगल की कटाई की तरफ भी रुख कर सकते हैं। कंजर्वेशन के लिहाज से ये बड़ा खतरा है, जो हमें दिखाई दे रहा है। '
अब गांवों की तरफ जा रहे हैं पर्यटक
सूरज शर्मा कहते हैं, 'पर्यटक अभी शहर छोड़कर गांवों की ओर जा रहे हैं। विलेज टूरिज्म बढ़ रहा है। लोग होम स्टे में रहना पसंद कर रहे हैं। टूरिस्ट ऐसी जगह जाना चाह रहे हैं, जहां भीड़-भाड़ ना हो। गांवों में अभी पर्यटक हैं, लेकिन शहरों में बड़े होटलों से टूरिस्ट गायब हैं।'
सम्राट सान्याल कहते हैं, 'पिछले एक महीने में नया ट्रेंड देखने को मिला है। पर्यटक ऑफबीट डेस्टिनेशन ज्यादा पसंद कर रहे हैं। होम स्टे में 90% तक कमरे बुक हुए हैं। लेकिन, पॉपुलर डेस्टिनेशन से पर्यटक अभी दूर ही हैं।' राज बासू कहते हैं, 'भारत में सबसे ज्यादा होम स्टे उत्तर बंगाल के पहाड़ी इलाकों में ही हैं। कैलिमपोंग के रूरल एरिया में होम स्टे की तादाद बहुत ज्यादा है। दशहरा दीवाली के दौरान होम स्टे 70% तक बुक थे।'
टूरिज्म इंडस्ट्री को वैक्सीन से उम्मीद
सूरज शर्मा कहते हैं कि पर्यटन से जुड़े लोगों को उम्मीद है कि अगर वैक्सीन जल्द आ गई तो कारोबार पटरी पर लौट सकता है। सम्राट सान्याल भी कहते हैं कि जब तक लोगों का डर नहीं निकलेगा, तब तक लोग बाहर नहीं निकलेंगे। वे कहते हैं, 'जहां प्रोटोकॉल फॉलो किए जा रहे हैं, वहां केस कम हैं। वैक्सीन आएगी तो लोगों का डर खत्म हो जाएगा।'
इधर, राज बासू का मानना है कि वैक्सीन आने के बाद भी पर्यटन को पटरी पर लौटने में समय लगेगा। बासू कहते हैं, 'वैक्सीन के भी बाजार में जाने के बाद पर्यटन उद्योग को पटरी पर आने में साल डेढ़ साल लग ही जाएगा। हमें लगता है कि अप्रैल 2022 से पहले हम पूरी तरह रिवाइव नहीं कर पाएंगे।'
बासू कहते हैं, 'हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है पर्यटन उद्योग को जिंदा रखना। इस काम से छोटे-छोटे लोग जुड़े होते हैं, जैसे ड्राइवर, चाय बेचने वाले, मोमोज बेचने वाले या छोटे-छोटे सामान बेचने वाले। ऐसे चालीस फीसदी लोग अब धंधे से दूर हो चुके हैं। जो बाकी 60% बचे हैं, उन्हें बेहतरी की उम्मीद है। हमें डर है कि मार्च तक पर्यटन से जुड़े 60% लोग यह कारोबार छोड़ देंगे।
पर्यटन पश्चिम बंगाल का सबसे तेजी से बढ़ता उद्योग था। दार्जिलिंग में चाय के बागानों की चमक फीकी पड़ने के बाद लोग बड़ी तादाद में पर्यटन से जुड़े थे। ये होमग्रोन इंडस्ट्री है, जो लोगों ने अपने दम पर खड़ी की है। यहां पर्यटन उद्योग गांव-गांव तक पहुंच गया है। इसकी आमदनी से लोगों का जीवन स्तर सुधरा है। बासू कहते हैं, 'टूरिज्म से जुड़े लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पा रहे थे। दार्जलिंग और कैलिंपोंग के आसपास गांव-गांव में लोग इस इंडस्ट्री से जुड़े हैं।'
सरकार से कोई मदद नहीं मिली
राज बासू बताते हैं कि अभी तक राज्य या केंद्र सरकार ने पर्यटन उद्योग को राहत देने के लिए कुछ भी नहीं किया है। वे कहते हैं, 'हमें नहीं पता कि आगे क्या होगा। राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने अभी तक हमें कोई भरोसा नहीं दिया है। हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया गया है। हम सरकार से पैसों की मदद की उम्मीद नहीं करते, लेकिन कम से कम नैतिक तौर पर तो हमारा समर्थन किया ही जा सकता है। अगले दो साल तक हमसे टैक्स न लिए जाएं, ये ही हमारी बड़ी मदद होगी।'
सम्राट सान्याल कहते हैं कि सरकार और कंपनियां कर्मचारियों को लीव एंड ट्रैवल अलाउंस कैश देने के बजाए उन्हें यात्रा करने को प्रोत्साहित करें। टूरिज्म इंडस्ट्री को जिंदा रखने के लिए यात्राओं को बढ़ावा देना जरूरी है।
'मौजूदा कानूनों में 'लव जिहाद' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। किसी भी केंद्रीय एजेंसी द्वारा 'लव जिहाद' का कोई मामला सूचित नहीं किया गया है।' ये जवाब है गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी का, जो उन्होंने इस साल 4 फरवरी को केरल में लव जिहाद के मामले को लेकर पूछे गए सवाल पर दिया था।
इसका जिक्र इसलिए, क्योंकि कानून में 'लव जिहाद' नाम का कोई शब्द है ही नहीं, फिर भी आजकल इसकी चर्चा हर तरफ हो रही है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश तो बाकायदा अध्यादेश लेकर आ गए हैं। हालांकि, वो अध्यादेश शादी के लिए जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए लाया गया है। लेकिन, इसे लव जिहाद के खिलाफ ही माना जा रहा है। अब जब इस पर इतनी बहस शुरू हो ही गई है, तो ये जानना जरूरी है कि हमारे देश के कितने राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून है? क्या दूसरे देशों में भी ऐसे कानून हैं? और क्या ऐसा कानून बना पाना वाकई संभव है।
सबसे पहले बात आजादी से पहले की
आजादी से पहले ब्रिटिश इंडिया के समय जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कोई कानून नहीं था। लेकिन, उस समय भी देश की चार रियासतों राजगढ़, पटना, सरगुजा और उदयपुर में इसको लेकर कानून थे। सबसे पहले 1936 में राजगढ़ में ऐसा कानून बना। उसके बाद 1942 में पटना, 1945 में सरगुजा और 1946 में उदयपुर में कानून बना। इन कानूनों का मकसद हिंदुओं को ईसाइयों में बदलने से रोकना था।
आजादी के बाद जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए क्या हुआ?
तो क्या जबरन धर्म परिवर्तन रोकने के लिए कोई कानून नहीं है?
सीनियर एडवोकेट उज्जवल निकम बताते हैं कि हमारे संविधान में जबरन धर्म को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। हमारे संविधान में कोई भी अपनी मर्जी से अपना धर्म बदल सकता है। हालांकि, कानून ये भी कहता है कि किसी के इच्छा के खिलाफ और किसी को डरा-धमकाकर उसका धर्म परिवर्तन करना गुनाह है।
क्या धर्म परिवर्तन रोकने के लिए राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।
कौन-कौन से राज्य जबरन धर्म परिवर्तन या कथित लव जिहाद को रोकने के लिए कानून ला रहे हैं?
क्या अभी भी किसी राज्य में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून हैं?
हां, अभी देश के 9 राज्यों में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए सख्त कानून हैं। पहले तमिलनाडु में भी इसके लिए कानून था, लेकिन 2003 में इसे निरस्त कर दिया गया।
क्या दूसरे देशों में भी इसे रोकने के लिए कानून बने हैं?
हां, भारत के पड़ोसी देशों में भी जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कानून हैं। नेपाल, म्यांमार, भूटान, श्रीलंका और पाकिस्तान में ऐसे कानून हैं। पाकिस्तान में सबसे ज्यादा धर्म परिवर्तन के मामले सामने आते हैं, लेकिन यहां जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। यहां मुस्लिम समुदाय इस कानून को निरस्त करने की मांग करता रहता है।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरे वनडे में भी भारतीय टीम का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। टीम के बॉलर्स एक बार फिर विकेट निकालने में कामयाब नहीं हुए। ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने जमकर उनकी क्लास ली और टॉप-5 बल्लेबाजों ने 50 से ज्यादा का स्कोर बनाया। इनमें स्टीव स्मिथ ने शानदार 104 रन की पारी खेली। वहीं, कप्तान एरॉन फिंच, डेविड वॉर्नर, मार्नस लाबुशाने और ग्लेन मैक्सवेल ने फिफ्टी लगाई।
भारत ने विकेट लेने के लिए कुल 7 बॉलर्स का इस्तेमाल किया। इनमें जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद शमी, नवदीप सैनी और यजुवेंद्र चहल ने तो 70 से ज्यादा रन लुटाए। बॉलिंग की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कप्तान विराट कोहली को मयंक अग्रवाल से बॉलिंग करानी पड़ी।
वन-डे में वे टीमें, जिनके 5 बल्लेबाजों ने एक ही मैच में 50+ स्कोर बनाया
देश | किसके खिलाफ | वेन्यू | साल |
पाकिस्तान | जिम्बाब्वे | कराची | 2008 |
ऑस्ट्रेलिया | भारत | जयपुर | 2013* |
ऑस्ट्रेलिया | भारत | सिडनी | 2020* |
*शुरुआती 5 बल्लेबाजों ने 50+ रन का स्कोर बनाया।
पावर-प्ले में फिर भारतीय गेंदबाज विकेट नहीं ले सके
लगातार पांचवें मैच में भारतीय बॉलर्स पावर-प्ले में एक भी विकेट नहीं ले सके। इससे पहले जनवरी-फरवरी में न्यूजीलैंड टूर पर भी भारतीय गेंदबाज पावर-प्ले में एक भी विकेट नहीं ले पाए थे। यही वजह रही कि मैच में ऑस्ट्रेलियाई टीम ने हाईएस्ट टोटल खड़ा किया। बुमराह-शमी जैसे दिग्गज तेज गेंदबाज भी कंगारू बल्लेबाजी के सामने बेबस नजर आए। पावर-प्ले में ऑस्ट्रेलियाई टीम ने बिना कोई विकेट खोए 59 रन बनाए।
जडेजा-पंड्या को छोड़कर सभी बॉलर्स ने रन लुटाए
रविंद्र जडेजा और हार्दिक पंड्या को छोड़कर सभी बॉलर्स ने जमकर रन लुटाए। टीम के लिए सिर्फ बुमराह और जडेजा ने ही 10 ओवर का कोटा पूरा किया। बुमराह ने मैच में सबसे ज्यादा 79 रन दिए। शमी ने 73, चहल ने 71 और सैनी ने 70 रन लुटाए। जडेजा ने अपने स्पेल में 60 रन दिए, जबकि पंड्या ने 4 ओवर में 24 रन दिए।
बुमराह के लिए इंटरनेशनल क्रिकेट के लिहाज से साल 2020 कुछ खास नहीं रहा। उन्होंने 2020 में अब तक 8 वनडे खेले हैं, जिसमें उनके नाम सिर्फ 3 ही विकेट दर्ज हैं। 2019 में उन्होंने 14 वनडे मैच में 25 और 2018 में 13 वनडे मैच में 22 विकेट लिए थे।
भारत के पास वॉर्नर-फिंच का तोड़ नहीं
भारत के पास दूसरे मैच में भी वॉर्नर-फिंच के खिलाफ कोई प्लान देखने को नहीं मिला। दोनों ने शुरुआती 10 ओवर्स में संभलकर टीम के स्कोर को आगे बढ़ाया। इसके बाद दोनों ने आक्रामक शॉट खेलने शुरू किए। वॉर्नर ने 7 चौकों और 3 छक्कों की मदद से 83 और फिंच ने 69 बॉल पवर 60 रन बनाए। वॉर्नर ने पहले वनडे में भी फिफ्टी लगाई थी, जबकि फिंच ने 115 रन की पारी खेली थी।
इन दोनों ने वनडे में अब तक कुल 12 बार शतकीय साझेदारी की है। जिसमें से 5 साझेदारियां (187, 231, 258 नॉट आउट, 156 और 142) भारत के खिलाफ रही हैं। भारत के खिलाफ दोनों का ही रिकॉर्ड शानदार है।
ऑस्ट्रेलिया के लिए सबसे ज्यादा 100+ रन की ओपनिंग पार्टनरशिप गिलक्रिस्ट-हेडन के नाम
ओपनर | कितनी बार |
एडम गिलक्रिस्ट-मैथ्यू हेडन | 16 |
एरॉन फिंच-डेविड वॉर्नर | 12 |
रिकी पोंटिंग-माइकल क्लार्क | 11 |
मैथ्यू हेडन-रिकी पोंटिंग | 10 |
978 वनडे मैचों के इतिहास में पहली बार ऐसा भी हुआ
डेविड वार्नर और एरॉन फिंच की सलामी जोड़ी ने एससीजी में खेले जा रहे दूसरे वनडे में पहले विकेट के लिए 142 रनों का साझेदारी की। यह इस जोड़ी की भारत के खिलाफ लगातार दूसरी शतकीय साझेदारी है। इसी मैदान पर खेले गए पहले वनडे मैच में इन दोनों ने 156 रन जोड़े थे। वनडे में यह लगातार तीसरा मौका है जब भारत के खिलाफ पहले विकेट के लिए शतकीय साझेदारी हुई हो और यह एक रिकॉर्ड भी है।
978 वनडे मैचों के इतिहास में पहली बार हुआ है कि भारत के खिलाफ लगातार तीन बार वनडे में पहले विकेट के लिए शतकीय साझेदारी हुई। इन दो वनडे मैचों से पहले माउंट माउनगानुई में न्यूजीलैंड की मार्टिन गुप्टिल और हेनरी निकोलस की जोड़ी ने पहले विकेट के लिए 106 रन जोड़े थे।
भारत के खिलाफ स्मिथ का शानदार प्रदर्शन जारी
भारत के खिलाफ स्टीव स्मिथ का शानदार प्रदर्शन जारी है। स्मिथ ने लगातार दूसरे वनडे में शतक जड़ा। यह भारत के खिलाफ उनका लगातार तीसरा शतक है। इस मैच से पहले स्मिथ ने 19 जनवरी को बेंगलुरू में भारत के खिलाफ 131 रनों की पारी खेली थी। इसके बाद, मौजूदा सीरीज के पहले मैच में जो इसी मैदान पर शुक्रवार को खेला गया था, उसमें स्मिथ ने 105 रन बनाए थे। भारत के खिलाफ ऐसा करने वाले वे चौथे खिलाड़ी हैं।
स्मिथ ने भारतीय बॉलर्स की जमकर क्लास ली और 162.5 के स्ट्राइक रेट से रन बनाए। अपनी पारी के दौरान उन्होंने 14 चौके और 2 छक्के जड़े। स्मिथ ने लाबुशाने के साथ तीसरे विकेट के लिए 136 रन की पार्टनरशिप की। इसके लिए दोनों बल्लेबाजों ने सिर्फ 95 बॉल का सामना किया। मिडिल ओवर में रन रेट बढ़ाकर उन्होंने मैक्सवेल के लिए बेस तैयार किया।
ऑस्ट्रेलिया के सबसे तेज शतक वाले खिलाड़ी
खिलाड़ी | किसके खिलाफ | कब | कहां | कितनी बॉल पर |
ग्लेन मैक्सवेल | श्रीलंका | 2015 | सिडनी | 51 |
जेम्स फॉकनर | भारत | 2013 | बेंगलुरु | 57 |
स्टीव स्मिथ | भारत | 2020 | सिडनी | 62 |
स्टीव स्मिथ | भारत | 2020 | सिडनी | 62 |
मैथ्यू हेडन | साउथ अफ्रीका | 2007 |
बस्सेटेरे |
66 |
मैक्सवेल की तूफानी पारी रही टर्निंग पॉइंट
ऑस्ट्रेलिया ने भारत के खिलाफ सबसे बड़ा स्कोर बनाया। इस मामले में उसने पिछले मुकाबले के 374 रन को पीछे छोड़ते हुए 389 रन का स्कोर बनाया। इसमें सबसे अहम योगदान रहा ग्लेन मैक्सवेल का। मैक्सवेल ने सिर्फ 29 बॉल पर 217 से अधिक के स्ट्राइक रेट से नाबाद 63 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने 4 चौके और 4 छक्के लगाए।
भारतीय बल्लेबाज बड़ी पारी नहीं खेल सके
टारगेट चेज करने उतरी भारतीय टीम के बल्लेबाजों को शुरुआत तो मिली, लेकिन वे इसे बड़ स्कोर में नहीं तब्दील कर सके। शिखर धवन (30) और मयंक अग्रवाल (58) ने टीम को अच्छी शुरुआत दिलाई, लेकिन वे वॉर्नर-फिंच की तरह मजबूत नींव नहीं रख सके।
कप्तान विराट कोहली (89) और लोकेश राहुल (76) ने भारत की उम्मीदों को जगाए रखा। श्रेयस अय्यर को भी अच्छी शुरुआत मिली, लेकिन वे भी 38 रन बनाकर चलते बने। पिछले मैच में बल्ले से कमाल दिखाने वाले हार्दिक पंड्या भी 28 रन ही बना सके।
तारीख थी 30 नवंबर 1872। पहली बार इंटरनेशनल फुटबॉल मैच खेला जा रहा था। पहला इंटरनेशनल मैच इंग्लैंड और स्कॉटलैंड की टीम के बीच खेला गया। मैच स्कॉटलैंड क्रिकेट ग्राउंड में खेला गया था। हालांकि, इससे पहले भी इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच 5 बार अनऑफिशियल मैच खेला गया था, जिसमें सभी मैच इंग्लैंड जीता था।
पहले मैच में स्कॉटलैंड ने ब्लू और इंग्लैंड ने व्हाइट जर्सी पहनी थी। इस मैच को देखने के लिए स्टेडियम में 4 हजार से ज्यादा दर्शक पहुंचे थे। हालांकि, ये मैच 15 मिनट देरी से शुरू हुआ था, क्योंकि दोनों टीमें प्रिपरेशन कर रही थीं। बताया जाता है कि उस मैच में खुद को वॉर्मअप करने के लिए स्मोकिंग भी कर रहे थे।
फुटबॉल के पहले इंटरनेशनल मैच का कोई नतीजा नहीं निकला था। 90 मिनट के मैच में कोई भी टीम गोल नहीं कर सकी और मैच ड्रॉ हो गया। इस मैच के ड्रॉ होने के बाद मांग उठी कि दोनों टीमों के बीच दोबारा मैच होना चाहिए, ताकि कोई नतीजा तो निकले। लोगों का कहना था कि हम गोल देखने आए थे, लेकिन गोल देख ही नहीं पाए। इसके बाद 8 मार्च 1873 को दोबारा इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच मैच हुआ। इस मैच में इंग्लैंड 4-2 से जीत गया।
दिल्ली के बादशाह की वजीर ने ही हत्या कर दी
दिल्ली में 1754 से 1759 तक बादशाह हुए आलमगीर द्वितीय। वो 16वें मुगल बादशाह थे। आलमगीर को अजीजुद्दीन के नाम से भी जाना जाता था। माना जाता है कि आलमगीर बहुत कमजोर शासक था। उसे उसके वजीर गाजीउद्दीन इमादुलमुल्क की कठपुतली कहा जाता था। एक समय आया जब आलमगीर गाजीउद्दीन से तंग आ गया और उससे पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा। लेकिन, गाजीउद्दीन चालाक था, जब आलमगीर ने उससे पीछा छुड़ाना चाहा तो गाजीउद्दीन ने ही आलमगीर की हत्या करवा दी और लाल किले के पीछे यमुना नदी में उसकी लाश फिंकवा दी।
भारत और दुनिया में 30 नवंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:
क्या हो रहा है वायरल : सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है। इसमें पुलिस और प्रशासन का अमला एक शख्स को गिरफ्तार कर जबरदस्ती वाहन में बैठाता दिख रहा है।
In delhi, going w/o mask, 10 hours in Jail. To be followed in other states also.
— VaidyVoice (@Vaidyvoice) November 23, 2020
( WA message). pic.twitter.com/CMO1D3WWS9
वीडियो में देखा जा सकता है कि शख्स को मास्क न पहनने पर गिरफ्तार किया जा रहा है। वीडियो के साथ शेयर किए जा रहे मैसेज में दावा है कि दिल्ली में मास्क न पहनने पर लोगों को 10 घंटे जेल में रखा जा रहा है। जल्द ही मुंबई और हैदराबाद में भी यही नियम लागू होने वाला है।
और सच क्या है ?
Met Hon’ble LG. Briefed him about the corona situation in Delhi. We agreed that to create effective deterrent so that people don’t omit wearing masks, we need to increase fine from the present Rs 500 to Rs 2000.
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) November 19, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी आएंगे। बतौर PM उनका यह 23वां दौरा है, जबकि दूसरे कार्यकाल में तीसरी बार आ रहे हैं। आखिरी बार वे 16 फरवरी को काशी आए थे। PM मोदी पहली बार देव दीपावली (कार्तिक पूर्णिमा) पर आ रहे हैं। वहीं, पहली बार वे गंगा मार्ग से काशी विश्वनाथ मंदिर जाएंगे। विश्वनाथ कॉरिडोर के विकास कार्यों को जाएजा लेते हुए वे बाबा विश्वनाथ धाम पहुंचेंगे और वहां पूजा-अर्चना करेंगे।
अलकनंदा क्रूज से PM काशीपति भगवान शिव के दरबार पहुंचेंगे
कार्तिक पूर्णिमा पर प्रधानमंत्री मोदी सोमवार दोपहर वाराणसी के बाबतपुर एयरपोर्ट पहुंचेंगे। यहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल उनकी अगुवानी करेंगे। यहां से PM खजुरी जाएंगे। यहां प्रयागराज-वाराणसी 6 लेन हाईवे का लोकार्पण करने के साथ ही उनकी जनसभा होगी। इसके बाद वे हेलीकॉप्टर से डोमरी जाएंगे। फिर यहां से वे सड़क मार्ग से भगवान अवधूत राम घाट जाएंगे और अलकनंदा क्रूज पर सवार होकर ललिता घाट पहुचेंगे।
ललिता घाट से उनका काफिला विश्वनाथ मंदिर आएगा। यहां दर्शन-पूजन कर कॉरिडोर के विकास कार्यों का स्थलीय निरीक्षण करेंगे। क्रूज से वापस राजघाट पहुचेंगे और दीप जलाकर दीपोत्सव की शुरुआत करेंगे। यहीं पावन पथ वेबसाइट का लोकार्पण होगा। राजघाट से ही प्रधानमंत्री मोदी क्रूज से रविदास घाट के लिए रवाना होंगे। चेत सिंह घाट पर 10 मिनट का लेजर शो देखेंगे।
रविदास घाट पहुंच कर कार से भगवान बुद्ध की तपोस्थली सारनाथ के लिए रवाना हो जाएंगे। यहां वे लाइट एंड साउंड शो देखेंगे और इसके बाद बाबतपुर एयरपोर्ट से दिल्ली वापस लौट जाएंगे। PM मोदी करीब सात घंटे काशी में रहेंगे।
पिछली बार से डेढ़ गुना ज्यादा जलेंगे दीप
देव दीपावली पर काशी के सभी 84 घाट दीपकों से रोशन होते हैं। हर साल लाखों लोग इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए पहुंचते हैं। लेकिन कोरोना संकट के चलते इस बार श्रद्धालुओं की संख्या सीमित कर दी गई है। हर एक शख्स के लिए मास्क अनिवार्य है। पिछले साल यहां 10 लाख दिये जलाए गए थे। लेकिन इस बार दीपों की संख्या में 5 लाख की बढ़ोत्तरी कर दी गई है। 20-25 घाटों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे।
21 बटुक और 42 कन्याएं कराएंगी आरती
इस दौरान 16 घाटों पर उनसे जुड़ी कथा की बालू से कलाकृतियां बनाई गई हैं। जैन घाट के सामने भगवान जैन की आकृति, तुलसी घाट के सामने विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया के कालिया नाग की आकृति और ललिता घाट के सामने मां अन्नपूर्णा देवी की आकृति भी बनाई गई है। देव दीपावली पर प्रधानमंत्री खुद भी दीपदान करेंगे। दशाश्वमेघ घाट पर महाआरती के दौरान 21 बटुक और 42 कन्याएं आरती में शामिल होंगी। सुरक्षा के लिहाज से एक दिसंबर तक काशी में ड्रोन उड़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
देव दीपावली की अहमियत
मान्यता है कि देव दीपावली के दिन सभी देवता बनारस के घाटों पर आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था। त्रिपुरासुर के वध के बाद सभी देवी-देवताओं ने मिलकर खुशी मनाई थी। काशी में देव दीपावली का अद्भुत संयोग माना जाता है। इस दिन दीपदान करने का पुण्य फलदायी व विशेष महत्व वाला होता है। मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ ने खुद धरती पर आकर तीन लोक से न्यारी काशी में देवताओं के साथ गंगा के घाट पर दिवाली मनाई थी। इसीलिए इस देव दीपावली का धार्मिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है।
पिछले 15 दिनों से बिहार की राजनीति में सुशील कुमार मोदी से ज्यादा चर्चा किसी की नहीं है। 15 नवंबर को सुबह जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आने वाले थे, तभी से छोटे मोदी को लेकर बवाल था। 12 साल में ऐसे कई बवाल आए। पिछले 5 साल में यह दूसरा मौका था, जब सुशील मोदी को साइडलाइन किया गया।
पिछली बार सुशील मोदी लालू प्रसाद के खिलाफ माहौल बनाकर दोबारा डिप्टी सीएम बने और इस बार जब यह कुर्सी छीनी गई तो फिर अपने पुराने मित्र पर खुलासा करके रिकवर कर गए।
15 नवंबर को NDA की बैठक के पहले भास्कर ने बता दिया था कि सुशील मोदी डिप्टी सीएम नहीं रहेंगे, केंद्र जाएंगे। पहला निर्णय तो तत्काल आ गया, लेकिन दूसरी खबर अटकी थी। केंद्र का उनका टिकट फाइनल नहीं हो रहा था, लेकिन लालू प्रसाद की तरफ से विधायकों को आ रहे ऑफर के जवाब में उन्हें कॉलबैक कर सोशल मीडिया में सबकुछ खोला तो पार्टी एक झटके में समझ गई कि "सुशील मोदी का विकल्प नहीं है'। और फिर, राज्यसभा के बाकी नाम कट गए, सुशील मोदी फाइनल हो गई।
12 साल पहले डिप्टी सीएम रहते दिल्ली में देनी पड़ी थी सफाई
2008 में नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया तो भाजपा के कद्दावर नेता चंद्रमोहन राय को स्वास्थ्य मंत्री का पद छोड़ना पड़ा। चंद्रमोहन राय को कमतर PHED विभाग मिलने का सारा दोष सुशील कुमार मोदी के सिर पर आया और बिहार भाजपा का एक बड़ा खेमा सुशील मोदी हटाओ अभियान में जुट गया। तब उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को दिल्ली पहुंच कर सफाई देनी पड़ी। इसके बाद भी मौका मिलते ही पीठ पीछे उन्हें किनारे करने की मुहिम कई बार चलीं। हालांकि, इस बार ऐसा लग रहा था कि सुशील मोदी के खिलाफ कोशिशें कामयाब हो गईं।
जदयू से 17 साल पुरानी दोस्ती टूटी, नीतीश प्रेम से टारगेट पर आए
नरेंद्र मोदी को PM पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद अनबन के साथ 16 जून 2013 को बिहार में भाजपा-जदयू की 17 साल पुरानी दोस्ती टूटी और भाजपा को विपक्ष में जाना पड़ा। नरेंद्र मोदी को PM प्रत्याशी बनाए जाने के पहले सुशील मोदी कई बार नीतीश को PM मेटेरियल भी कह चुके थे, इसलिए जैसे ही नरेंद्र मोदी की घोषणा हुई और नीतीश कुमार ने तीखा विरोध शुरू किया तो कहीं न कहीं सुशील मोदी के खिलाफ भी माहौल बन गया। जदयू ने राजद का साथ लेकर सरकार बना ली और सुशील मोदी किनारे ही लग गए।
2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत के तुरंत बाद 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में NDA की जबरदस्त हार से भाजपा हिल गई। पार्टी को यह उम्मीद ही नहीं थी कि अगले पांच साल तक महागठबंधन की मजबूत सरकार को हिलाना संभव होगा।
ऐसे मौके पर सुशील कुमार मोदी ने एक तरह से अकेले ही कमान संभाली। 4 अप्रैल 2017 तक लालू परिवार के खिलाफ 44 प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं। विपक्ष में रहकर लालू परिवार पर आय से अधिक संपत्ति के मामलों का खुलासा किया और कागजी प्रमाण भी लेकर आए। हर प्रेस कांफ्रेंस के साथ राजद-जदयू सरकार असहज होती गई और नीतीश सोचने को मजबूर हो गए।
नीतीश को फिर NDA का CM बनाया, गिफ्ट मिला डिप्टी का पद
2015 विधानसभा चुनाव में महज 53 सीटें लेकर विपक्ष में बैठी भाजपा को सुशील कुमार मोदी के खुलासे ने नई उम्मीद दिखाई। राजद-जदयू की दूरियां ऐसी बढ़ीं कि 26 जुलाई 2017 को भाजपा-जदयू फिर एक बार साथ गए। 4 साल बाद हुए इस गठजोड़ में सुशील मोदी ने सबसे अहम भूमिका निभाई, लेकिन इसके बावजूद पार्टी के अंदर उनका विरोध खत्म नहीं हो रहा था। इस बार नीतीश कुमार फ्रंट पर आए और उनकी मांग पर सुशील मोदी को बिहार का उप-मुख्यमंत्री बनाया गया।
नीतीश-प्रेम ने विकेट गिराया, लालू पर खुलासे ने दिया केंद्र का टिकट
नीतीश कुमार से सुशील कुमार मोदी का प्रेम वर्षों से चर्चा में रहा है। इस बार भाजपा मजबूत हुई तो इस प्रेम को तोड़ने के लिए सुशील कुमार मोदी को दरकिनार करने की आवाज बुलंद हो गई। 14 नवंबर की शाम जानकारी आई कि भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह इसी पर विधायकों से रायशुमारी के लिए पटना आ रहे हैं। 15 नवंबर को वह आए भी, लेकिन प्रदेश कार्यालय में रायशुमारी का इंतजार कर रहे भाजपा विधायकों से मिले बगैर सीधे सुशील मोदी के साथ NDA की बैठक में ही गए। सुशील मोदी को एक बार भी नहीं छोड़ा।
NDA बैठक में फाइनल हो गया कि सुशील मोदी डिप्टी CM नहीं रहेंगे, लेकिन उन्हें यह भरोसा नहीं दिलाया गया कि उनके साथ भविष्य में क्या होगा। उन्होंने सोशल मीडिया पर दु:ख जाहिर भी किया कि कार्यकर्ता का पद तो कोई नहीं छीन सकता। पार्टी दफ्तर से राजभवन तक, हर जगह दरकिनार नजर आए सुशील मोदी इस बार भी शांत नहीं बैठे।
विधानसभा अध्यक्ष चुनाव से एक दिन पहले 24 नवंबर को NDA विधायकों को लालच देकर सरकार के खिलाफ जाने का खुलासा किया। ऐसी एक कॉल की इन्फॉर्मेशन भी लाए और लालू यादव को कॉल-बैक करने की जानकारी भी सोशल मीडिया पर दी। यह तुरुप का पत्ता काम आया। लालू गेस्ट हाउस से रिम्स गए और इधर भाजपा ने सुशील मोदी को राज्यसभा का टिकट सौंप दिया।
तनाव या स्ट्रेस से हर व्यक्ति जूझता है। यह समस्या अगर ज्यादा दिन तक रहती है, तो बीमारी में बदल जाती है। कई बार ज्यादा तनाव लेने से लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं। डिप्रेशन कई तरह के होते हैं। उन्हीं में से एक है प्रेग्नेंसी के समय होने वाला डिप्रेशन।
भोपाल में साइकैट्रिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि यह समस्या ज्यादातर गर्भवती महिलाओं में कॉमन है, लेकिन कई बार जागरूकता के कमी के कारण महिलाओं को पता नहीं होता है कि उन्हें डिप्रेशन है।
गर्भवती महिलाओं में डिप्रेशन होने के दोहरे नुकसान हैं। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे को भी नुकसान हो सकता है। समस्या से निपटने के लिए उससे जुड़ी जानकारी होना जरूरी है।
प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाला डिप्रेशन क्या है?
प्रेग्नेंसी में डिप्रेशन को ऐसे पहचानें
डिप्रेशन की वजह से प्रेग्नेंसी पर असर होना
प्रेग्नेंसी के समय डिप्रेशन होने से मन और व्यक्तित्व पर बुरा असर पड़ सकता है। NCBI (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी) की एक रिसर्च में सामने आया कि प्रेग्नेंसी के दौरान इस तरह की समस्याओं पर ध्यान देना जरूरी है।
इसके चलते अगर ध्यान नहीं दिया गया तो यह और भी खतरनाक हो सकता है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन यानी प्रसव के बाद होने वाले डिप्रेशन का खतरा भी बढ़ जाता हैै।
प्रेग्नेंसी के समय डिप्रेशन से बच्चे पर होने वाले नुकसान
प्रेग्नेंसी में डिप्रेशन का इलाज
कोरोना वैक्सीन के ट्रायल की हर तरफ चर्चा है। मध्यप्रदेश सरकार भी इसको लेकर उत्साहित है। सरकार कहती है कि ट्रायल पूरा होते ही वैक्सीनेशन शुरू करा दिया जाएगा। तैयारियों का रिव्यू भी हो चुका है। लेकिन, पं. दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा पर चलने वाली BJP की सरकार यह नहीं बता पा रही है कि राज्य में आखिरी आदमी तक यह डोज कैसे पहुंचेगी? यानी इतनी बड़ी आबादी को वैक्सीन कैसे मिलेगी?
दैनिक भास्कर ने MP के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग से इस बारे में बातचीत की। उन्होंने कहा- कोल्ड चैन तैयार कर ली गई है, जो सबसे जरूरी है। हम पूरी तरह तैयार हैं। सभी को फ्री में वैक्सीन लगेगी।
सवाल- प्रदेश में अंतिम व्यक्ति तक वैक्सीन कैसे पहुंचेगी?
जवाब- केंद्र की गाइडलाइन के मुताबिक, वैक्सीन आने से पहले ही तैयारी कर ली है। सबसे जरूरी कोल्ड चेन को डेवलप करना था। वैक्सीन के लिए एक विशेष तापमान की जरूरत होती है। हमने ट्रांसपोर्टेशन, ट्रक और कोल्ड चेन में उपयोग में आने वाले फ्रीजर का इंतजाम कर लिया है।
सवाल- सबसे पहले वैक्सीन किसे लगेगी?
जवाब- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि प्रदेश में सभी को फ्री में वैक्सीन मिलेगी। प्रदेश में पहले फेज में हेल्थ वर्कर को वैक्सीन लगाई जाएगी। उनकी लिस्ट बना ली गई है। इसे केंद्र सरकार को सौंप दिया है।
सवाल- पहले वैक्सीन कहां मिलेगी, शहर या गांव में?
जवाब- इसमें कोई कैटेगरी नहीं होगी। वैक्सीन सभी को लगाई जाएगी। इसे फेज वाइज रखा गया है। वैक्सीन के डोज की उपलब्धता से तय होगा कि हम कितने लोगों को वैक्सीन लगा सकते हैं और किस सेगमेंट में लगा सकते हैं।
सवाल- कोवैक्सिन के ट्रायल मे आपकी क्या भूमिका है?
जवाब- भारत बायोटेक का ट्रायल ICMR के निर्देशन में पूरे देश में हो रहा है। ट्रायल में हमारी तरफ से जो भी सहयोग चाहिए, हम उसके लिए तैयार हैं। ट्रायल एक महीने के अंदर पूरा होगा। वैक्सीन कामयाब रही और यहां भेजी गई, तो हम उसे जनता तक भेजने के लिए तैयार हैं।
सवाल- प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में ट्रायल शुरू हुआ, सरकारी में नहीं हुआ?
जवाब- इसे अलग-अलग कैटेगरी में नहीं बांटा जा सकता। इसमें किसी तरह की गफलत नहीं होनी चाहिए। गांधी मेडिकल कॉलेज में कंस्ट्रक्शन चल रहा है। वहां साइट को लेकर कुछ तैयारी नहीं हो पाई थी। वहां भी जल्दी ही ट्रायल शुरू होगा। सब कुछ सरकार की गाइडलाइन के हिसाब से हो रहा है। इसमें सरकारी और प्राइवेट नहीं करना चाहिए।
सवाल- ट्रायल में वालंटियर्स की सहमति कम मिल रही है?
जवाब- आज ही मैं मेडिकल कॉलेज गया था। वहां 80 साल के एक बुजुर्ग वॉलंटियर टीका लगवाने को तैयार थे। ऐसे बड़े प्रोजेक्ट में जन जागरण की जरूरत होती है और वह हो रहा है। पीपुल्स में 2 हजार लोगों को टीके का डोज लगेगा। इसके लिए लोग तैयार हो रहे हैं। लोगों की काउंसिलिंग की जा रही है।
The National Health Service (NHS) is a cornerstone of the United Kingdom’s healthcare system, providing a wide range of medical services to...