Header logo

Saturday, May 30, 2020

मीलों का फासला तय कर घर लौटे; अपनों के लिए कोई मचान पर तो किसी ने खुद को खेत में किया क्वारैंटाइन, कहीं तिरस्कार भी सहना पड़ा https://ift.tt/36ICOhD

कोरोनावायरस महामारी के बीच लॉकडाउन के 66 दिनों में अब तक भूख, बेबसी, तिरस्कार की तमाम ऐसी कहानियां सामने आईं, जिसने कभी दिलों को झकझोरा तो कभी निराशा के बादल उमड़ने लगे। रोजी रोटी का संकट सामने आया तो हजारों प्रवासी श्रमिकों ने परिवार के साथ हजारों किमी का फासला पैदल ही तय कर डाला।

दर दर की ठोकरें खाते हुए कई दिन और रातें भूखे पेट रहकर जब ये प्रवासी मजदूर अपने घरों की दहलीज तक पहुंचे तो उन्हें यह डर सताने लगा कि, कहीं परिवार के अपनों की जान जोखिम में न पड़ जाए, इसलिए 14 दिन घर से बाहर रहने का निर्णय लेना पड़ा। कई जगहों पर उन्हें अपनों का ही विरोध झेलना पड़ा। ऐसी ही 6 कहानी प्रवासी श्रमिकों की जुबानी...


पहली कहानी: अपनों ने मुंह फेरा, 13 दिन खुले आसमान के नीचे बिताए
इटावा जिले में ब्लॉक बढ़पुरा के हरदासपुरा गांव में सूरत, अहमदाबाद, उत्तराखंड, फरीदाबाद से कई श्रमिक परिवार आए हैं। लेकिन, लोगों ने उन्हें गांव में घुसने से भी रोक दिया। अपनों का विरोध देखकर श्रमिकों के घर लौटने की खुशी एक पल में चकनाचूर हो गई। आसपास कोई क्वारैंटाइन सेंटर नहीं था। प्रधान ने भी एक न सुनी।

ऐसे में श्रमिकों ने गांव के बाहर सड़क पर ही खुले आसमान के नीचे अपना आशियाना बना लिया और 13 दिन से लगातार भीषण धूप और लपट के थपेड़ों को सहने को मजबूर हैं। अहमदाबाद से अपने पति के साथ अपने मायके आईमहिला को भी घरवालों ने दिल पर पत्थर रखकर दामाद और बच्चों सहित गांव के बाहर रहने के लिए मजबूर कर दिया है।

इटावा जिले में ब्लॉक बढ़पुरा के हरदासपुरा गांव में खुले आसमान के नीचे श्रमिक।

दूसरी कहानी: अपने न हों बीमार इसलिए तिरपाल की बनाई झोपड़ी
प्रयागराज के ग्राम पंचायत जूही में रहने वाले राज बहादुर व गोलू 22 मई को मुंबई से अपने गांव पहुंचे हैं। गांव में पहुंचने के बाद इन दोनों ने जागरूकता का परिचय दिया और स्वास्थ्य विभाग में जांच कराई और फिर गांव के बाहर निबिहा तालाब के पास तिरपाल की अलग-अलग झोपड़ी बनाकर खुद को क्वारैंटाइन कर लिया है।

मुंबई में चूड़ी बनाने का काम करने वाले इन लड़कों का कहना है कि वह खुद से ज्यादा अपने परिवार को सुरक्षित रखना चाहते हैं। चूंकि घर में क्वारैंटाइन की सुविधा नहीं है, इसलिए पालीथिन के नीचे रह रहे हैं। दिन में धूप अधिक होने पर पेड़ों के नीचे चले जाते हैं। रात में उसी पालीथिन के नीचे सोते हैं।

इस तरह जूही गांव की फूलकली आदिवासी पत्नी अमृतलाल, दुवसिया पत्नी मोहन, राजा पुत्र सत्यभान छह मई को कानपुर से आए हैं। ये लोग भी उसी तालाब के पास पेड़ के नीचे पॉलीथिन के तिरपाल की झोपड़ी बनाकर 14 दिन के लिए क्वारैंटाइन हैं।

प्रयागराज जिले में तिरपाल की झोपड़ी में रह रहे युवक।


तीसरी कहानी: आम के पेड़ पर मचान बनाया, स्वास्थ्य विभाग ने उसी पर चस्पा किया नोटिस
अयोध्या में मिल्कीपुर तहसील के खजुरी मिर्जापुर गांव के मेहताब व गुलशेर मुंबई में काम करते थे। लॉकडाउन में काम बंद हुआ तो श्रमिक ट्रेन से अपने गांव पहुंचे और सेल्फ होम क्वारैंटाइन की व्यवस्था गांव के बाहर बाग में बनाई। दोनों का कहना है कि 14 दिनों तक कोरोना संक्रमण से गांव व परिवार की सुरक्षा को ध्यान में रखकर यह निर्णय किया है।

सोलर चार्जर से मोबाइल चार्ज कर लेते हैं। पीने का पानी अपने कंटेनर में सुरक्षित रखते हैं। खाने पकाने की व्यवस्था भी बाग में हो जाती है। इसके अलावा परिवार के लोग व गांव वाले खाने पीने का इंतजाम कर दे रहे हैं। जब प्रशासन को इनके क्वारैंटाइन होने की जानकारी हुई तो स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों ने आम के पेड़ पर ही पंपलेट लगा दिया।

अयोध्या में मिल्कीपुर तहसील के खजुरी मिर्जापुर गांव में आम के पेड़ पर मचान बनाए गुलशेर।


चौथी कहानी: घर वालों से खेत में मंगाया बिस्तर, फिर वहीं बनाया आशियाना
अयोध्या जिले में इछोई गांव के अंबरीश शुक्ला एवं गणेश दुबे 18 मार्च को दिल्ली रोजगार के लिए पहुंचे थे, लेकिन 4 दिन बाद ही लॉकडाउन की घोषणा हो गई। दिल्ली से निकलने के बाद कार व ट्रक से जगदीशपुर 16 मई को पहुंचे। जहां पुलिसवालों ने मिल्कीपुर जाने वाले ट्रक पर बिठा दिया।

मिल्कीपुर पहुंचने के बाद यह दोनों युवक रात में ही अपने गांव को पैदल निकल लिए। गांव के करीब पहुंचते ही इन दोनों युवकों ने अपने परिजनको फोन पर सूचना दी और उनसे कहा कि कोरोनावायरस महामारी को देखते हुए हम दोनों लोगों का बिस्तर बाग में ही दे दिया जाए और हम दोनों लोग बाग व खेत में ही रहेंगे। दोनों युवकों ने खुद को खेत व बाग में क्वारैंटाइन कर लिया है। दोनों दिन में बाग और रात में खेत में रहते हैं।

अयोध्या जिले में इछोई गांव में खेत में क्वारैंटाइन युवक।

पांचवीं कहानी: रात काटते हैं मचान पर तो दिन कटता है बगीचे में
प्रतापगढ़ के रानीगंज निवासी अजय मुंबई में अपना छोटा मोटा व्यवसाय करते थे। लॉकडाउन के करीब 50 दिन वहां पर उन्होंने जैसे तैसे काटे। लेकिन, जैसे-जैसे वहां संक्रमण बढ़ा, उनका डर भी बढ़ने लगा। कामकाज ठप हो चुका था तो कुछ साथियों सहित गाड़ी बुक कर 5 दिन पहले गांव पहुंचे हैं।

लेकिन, अपनों की खातिर खुद को मचान पर क्वारैंटाइन किया हुआ है। खाना पीना घर से आ जाता है। दिन तो बगीचे में कट जाता है। जबकि रात खेत में बने मचान पर बीतती है।

प्रतापगढ़ के रानीगंज में इस युवक ने मचान बनाकर खुद को किया क्वारैंटाइन।

छठी कहानी: तीन भाइयों ने भूसा घर में खुद को किया क्वारैंटाइन
तीन सगे भाई अविनाश पांडेय, अमित और नलिन अमेठी जिले के संग्रामपुर थाना क्षेत्र के टीकरमाफी के ग्राम पूरे गंगा मिश्र के मूल निवासी हैं। बड़ा भाई अविनाश मुम्बई में एक कंपनी में काम करता है। उससे छोटा अमित वहां रहकर पढ़ाई और सबसे छोटा नलिन लॉकडाउन से पहले मुम्बई घूमने गया था।

लॉकडाउन के ऐलान के बाद तीनों वहीं फंस गए। जैसे-तैसे कुछ दिन कटे फिर खाने-पीने की समस्या से दो चार होने लगे। अंत में 13 मई को तीनों भाई परदेस से घर लौटे। यहां पहुंचकर तीनों ने भूसा रखे जाने वाले कमरे में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ खुद को क्वरैंटाइन कर लिया है।

अविनाश ने बताया कि कोरोना से मुम्बई में स्थिति चिंताजनक है। हर कोई वहां डरा हुआ है। ऐसी स्थिति में हम सब जिंदगी बचाकर यहां आए हैं तो हम ये नहीं चाहते कि हमारी वजह से किसी को कोई परेशानी का सामना करना पड़े। यहां लौटने के बाद हम सबका सैंपल लिया गया था। रिपोर्ट भी नार्मल आई है। लेकिन सुरक्षा और सावधानी के दृष्टिकोण से हम सब स्वेच्छा से रह रहे हैं।

अमेठी जिले के संग्रामपुर थाना क्षेत्र के टीकरमाफी के ग्राम पूरे गंगा मिश्र के भूसा घर की सफाई कर उसे तीन भाइयों ने बनाया आशियाना।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
ये तस्वीर अयोध्या की है। खजुरी मिर्जापुर गांव के मेहताब व गुलशेर मुंबई में काम करते थे। लॉकडाउन में काम बंद हुआ तो श्रमिक ट्रेन से अपने गांव पहुंचे और सेल्फ होम क्वारैंटाइन की व्यवस्था गांव के बाहर बाग में बनाई।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3dhaRQG

No comments:

Post a Comment

What is NHS Medical? A Comprehensive Guide

The National Health Service (NHS) is a cornerstone of the United Kingdom’s healthcare system, providing a wide range of medical services to...