Header logo

Thursday, May 28, 2020

लीडरशिप पर उठ रहे सवालों को दबाने और खुद की राष्ट्रवादी छवि गढ़ने के लिए सेना का इस्तेमाल कर रहे जिनपिंग https://ift.tt/3dcJ83E

भारत और चीन एक बार फिर आमने-सामने हैं। सीमा पर जवानों की झड़प हो रही है, डिप्लोमेट्स के बीच तल्ख बातचीत हो रही है। सीमा पर संवेदनशील इलाकों में आर्मी की तैनाती बढ़ाई जा रही है। और यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब पूरी दुनिया कोविड 19 के संक्रमण से जूझ रही है। इस समय सरकारें अपनी पूरी ताकत और संसाधन कोरोना से निपटने, स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त करने और आर्थिक चुनौतियों से पार पाने में झोंक रहे हैं। भारत के हालात भी कुछ अलग नहीं है, यहां कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं वहीं वित्तीय हालात भी नीति-निर्माताओं को परेशान कर रहे हैं।

2015 के बाद से पहली बार चीन और भारत के बीच की 3488 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर तनाव इतना ज्यादा है। चीनी सेना ने पैंगोंग सो झील, गलवान घाटी के साथ-साथ लद्दाख से जुड़ी हुई एलएसी पर अपनी सेनाओं की तैनाती बढ़ा दी है। चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाना भारत की रणनीतिक प्राथमिकता रही है। इस मसले को निपटाने के लिए भारत कई सालों से अपने-अपने स्तर पर प्रयास करता आ रहा है।

2018 में प्रधानमंत्री नरेेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से वुहान में मिले थे। यहां हुई अनौपचारिक बातचीत में दोनों सेनाओं के बीच संवाद, समझ बढ़ाने के साथ ही सीमा विवादों को सुलझाने के लिए सहमति भी बनी थी। सीमा पर चीन का यह आक्रामक रवैया यूं नहीं है।

दरअसल भारत ने पिछले कुछ सालों में अपनी सीमाएं मजबूत की हैं, उनका प्रबंधन बेहतर किया है, सीमा पर अपना इंफ्रास्ट्रक्चर भी मजबूत किया है, इससे भारतीय सेना का मनोबल बढ़ा है। भारतीय सेना की मौजूदगी उन क्षेत्रों में भी बढ़ी है, जिसकी चीनीसेना कभी उम्मीद भी नहीं कर सकती थी। एलएसी पर भारतीय सेना की पेट्रोलिंग प्रभावी तरीके से हो रही है और चीन की हरकतों पर भारत डटकर खड़ा हुआ है। भारत-चीन सीमा का सीमांकन स्पष्ट नहीं है, कई बार सीमा पर छुटपुट विवाद होते रहे हैं, जिसे स्थानीय स्तर पर सुलझा लिया जाता था। लेकिन इस बार हालात कुछ और ही हैं।

उधर, अमेरिका के साथ चल रही चीन की ट्रेड वॉर ने चीन के आर्थिक अनुमानों पर सवाल खड़े किए हैं। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) ने भी माना है कि 1990 के बाद से पहली बार आर्थिक हालात खराब हैं। जियोपॉलिटिकल लाभ लेने के लिए चीन की इकोनॉमिक ग्लोबलाइजेशन नीति पर सवाल उठ रहे हैं।

शी जिनपिंग की राजनीतिक बुलंदी इस समय डांवाडोल हो रही है। बीजिंग के खिलाफ दुनिया का आक्रोश बढ़ रहा है। जिनपिंग के अति-महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ड एंड रोड इनीशिएटिव प्रोजेक्ट से लेकर, कोविड -9 आपदा के कुप्रबंधन, हांगकांग-ताइवान मसले पर उठ रहे विरोध से भी जिनपिंग की लीडरशिप पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। ऐसे में जिनपिंग की राष्ट्रवादी छवि गढ़ने के लिए चीनी सेना को आगे कर दिया है।

दक्षिण चीन सागर विवाद से लेकर दक्षिण एशियाई महाद्वीपीय सीमाओं पर हम चीन का यह तरीका देख चुके हैं। इनसे जिनपिंग चीन के लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि वे अपने स्टैंड पर कायम है। हालांकि नई दिल्ली ने भी पिछले कुछ समय से चीन को सीधी चुनौती दी है। भारत ने एफडीआई कानूनों को सख्त किया है। कोरोना में चीन की भूमिका जांचने के पक्षधर लोगों के साथ भारत खड़ा हुआ है। ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन के शपथग्रहण समारोह में वर्चुअली दो भारतीय सांसदों की उपस्थिति से भी चीन बौखलाया है।

भारत के प्रति चीन का यह रवैया चीन की वैश्विक महात्वाकांक्षाओं और अंदरुनी असुरक्षा के कारण है। सवाल है कि इन हालातों में भारत क्या कर सकता है। भारत को खुद को मजबूत रखते हुए चीन के विरुद्ध अपनी क्षमताएं बढ़ाने और अपने विदेशी सहयोगियों को साथ जोड़ने का ही विकल्प है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
हर्ष वी पंत, प्रो. इंटरनेशनल रिलेशन्स किंग्स कॉलेज, लंदन।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2XEqIlt

No comments:

Post a Comment

The Human Lung: A Vital Organ in Respiratory Health

  The human lung is a remarkable organ, essential for our survival and well-being. Located in the chest, the lungs are responsible for the c...