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Thursday, April 30, 2020
Maggie Haney, Elite Gymnastics Coach, Is Suspended for 8 Years
By BY DANIELLE ALLENTUCK from NYT Sports https://ift.tt/3d1e2eJ
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पान मसाला, च्यूइंगम के उत्पादन और बिक्री पर रोक; गृह मंत्रालय ने कहा- नई गाइड लाइन 4 मई से लागू होंगी, जल्द ऐलान किया जाएगा https://ift.tt/2xnWb2s
केंद्रीय गृह मंत्रालय में बुधवार शाम देश में कोरोना के हालात पर रिव्यू मीटिंग हुई। इसके बाद मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, “पान मसाला और च्यूइंगम के उत्पादन और बिक्री पर अगले आदेश तक पूरी तरह रोक लगा दी गई है। लॉकडाउन से काफी फायदा मिला और स्थिति सुधरी। यह लाभ जारी रहे। लिहाजा, 3 मई तक गाइडलाइंस के पालन पर पैनी नजर रखी जाएगी। नए दिशा निर्देश 4 मई से लागू होंगे। इनमें कई जिलों को राहत दी जा सकती है। इस बारे में जानकारी कुछ दिनों में दी जाएगी।”
देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 33 हजार 062 हो गई है। बुधवार को मध्यप्रदेश में 94, आंध्रप्रदेश में 73,राजस्थान में 29, पश्चिम बंगाल में 28, उत्तरप्रदेश में 20,बिहार में 17, चंडीगढ़ में 11, केरल में 10,कर्नाटक में 9और ओडिशा में 4 मरीज की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। ये आंकड़े covid19india.org और राज्य सरकारों से मिली जानकारी के अनुसार हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में 31 हजार 787 संक्रमित हैं। इनमें से 22 हजार 982 का इलाज चल रहा है, 7796 ठीक हुए हैं और 1008 की मौत हुई है।
5 दिन जब संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले आए
दिन | मामले |
28 अप्रैल | 1902 |
25 अप्रैल | 1835 |
29 अप्रैल | 1702 |
23 अप्रैल | 1667 |
26 अप्रैल | 1607 |
26 राज्यऔर 6 केंद्र शासित प्रदेशों में फैला संक्रमण
कोरोनावायरस का संक्रमणदेश के 26 राज्यों में फैला है।6 केंद्र शासित प्रदेश भीइसकी चपेट में हैं।इनमें दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान-निकोबार, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और पुडुचेरी शामिल हैं।
राज्य | कितने संक्रमित | कितने ठीक हुए | कितनी मौत |
महाराष्ट्र | 9915 | 1593 | 432 |
गुजरात |
4082 | 527 | 197 |
दिल्ली | 3314 | 1078 | 54 |
राजस्थान |
2393 | 781 | 52 |
मध्यप्रदेश | 2560 | 461 | 130 |
तमिलनाडु | 2162 | 1210 | 27 |
उत्तरप्रदेश | 2134 | 510 | 39 |
आंध्रप्रदेश | 1332 | 287 | 31 |
तेलंगाना | 1009 | 374 | 25 |
पश्चिम बंगाल | 725 | 119 | 22 |
जम्मू-कश्मीर | 581 | 192 | 8 |
कर्नाटक | 534 | 216 | 21 |
केरल | 496 | 369 | 4 |
पंजाब |
375 |
101 |
19 |
हरियाणा | 311 | 225 | 3 |
बिहार | 403 | 64 | 2 |
ओडिशा | 125 | 39 | 1 |
झारखंड |
105 | 19 | 3 |
उत्तराखंड | 54 | 36 | 0 |
हिमाचल प्रदेश | 40 | 25 | 2 |
असम | 38 | 29 | 1 |
छत्तीसगढ़ | 38 | 34 | 0 |
चंडीगढ़ | 68 | 17 | 0 |
अंडमान-निकोबार |
33 | 15 | 0 |
लद्दाख | 22 | 17 | 0 |
मेघालय | 12 | 0 | 1 |
पुडुचेरी |
8 | 5 | 1 |
गोवा | 7 | 7 | 0 |
मणिपुर | 2 | 2 | 0 |
त्रिपुरा | 2 | 2 | 0 |
अरुणाचल प्रदेश | 1 | 1 | 0 |
मिजोरम | 1 | 1 | 0 |
ये आंकड़े covid19india.org और राज्य सरकारों से मिली जानकारी के अनुसार हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश में 31 हजार 787 संक्रमित हैं। इनमें से 22 हजार 982 का इलाज चल रहा है, 7796 ठीक हुए हैं और 1008 की मौत हुई है।
5 राज्य और 1 केंद्र शासित प्रदेश का हाल
- मध्यप्रदेश, संक्रमित- 2560:हेल्थ डिपार्टमेंट के मुताबिक, राज्य में कुल 2560 मामलों की पुष्टि हुई है। 130 जान गंवा चुके हैं। इंदौर में सबसे ज्यादा 1476 केस और 65 मौतें हुईं। भोपाल में 483 मामले और 14 मौत हुई हैं।
- उत्तरप्रदेश, संक्रमित- 2073:यहां बुधवार सुबह लखनऊ के केजीएमयू की रिपोर्ट में 20 पॉजिटिव पाए गए। इनमें लखनऊ में 4, आगरा में 9 और फिरोजाबाद में 7 नए मरीज मिले। बीते 24 घंटे में 70 नए मरीज मिले। राज्य में कुल संक्रमितों में 1053 जमाती और उनके संपर्क में आए लोग हैं।462 कोरोना पेशेंट ठीक हो चुके हैं। संक्रमण राज्य के 75 में से 60 जिलों में फैल चुका है।
- महाराष्ट्र, संक्रमित- 9915:राज्य में बुधवार को 32 संक्रमितों की मौत हुई। 597 नए मामले सामने आए। धारावी में नए संक्रमितों की संख्या इसी दौरान 14 रही। माहिम में 3 नए मामलों की पुष्टि हुई। बीएमसी के एक इंस्पेक्टर मधुकर हरयान की संक्रमण से मौत हो गई है।
- राजस्थान, संक्रमित- 2393:यहां बुधवार को 29 नए मामले आए। इनमें से अजमेर में 11, जयपुर में 8, चितौड़गढ़ में 5,जबकि उदयपुर, बांसवाड़ा, धौलपुर, कोटाऔर जोधपुर में 1-1 मरीज मिला। राज्य मेंमंगलवारको 102 मरीजों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई।
- बिहार, संक्रमित- 392:यहां बुधवार को संक्रमण के 37 मामले सामने आए। इनमें से बक्सर में 14, पश्चिमी चंपारण में 5, दरभंगा में 4, पटना और रोहतास में 3-3, भोजपुर और बेगूसराय में 2-2, जबकि औरंगाबाद, वैशाली, सीतामढ़ी और मधेपुरा में 1-1 मरीज मिला।
- दिल्ली, संक्रमित- 3314:स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैनने कहा है कि आजादपुर सब्जी मंडी के 11 व्यापारी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। उन्होंने कहा कि सभी के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, वे मंडी में सीधे किसी के संपर्क में नहीं थे। जैन ने यह भी कहा कि नई गाइडलाइन के तहत अब मामूली लक्षण वाले संक्रमितों को घर पर ही 14 दिन के लिए क्वारैंटाइन किया जाएगा।
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from Dainik Bhaskar /national/news/coronavirus-outbreak-india-live-today-news-updates-delhi-kerala-maharashtra-rajasthan-haryana-cases-novel-corona-covid-19-death-toll-127260209.html
A Strange Dinosaur May Have Swam the Rivers of Africa
By BY KENNETH CHANG from NYT Science https://ift.tt/2KHnJ5Y
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Harrison Ford Strayed Onto an Active Runway in His Plane
By BY NEIL VIGDOR from NYT U.S. https://ift.tt/2KHIxu9
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Prisoner With Coronavirus Dies After Giving Birth While on Ventilator
By BY NICHOLAS BOGEL-BURROUGHS AND VANESSA SWALES from NYT U.S. https://ift.tt/3bKGj97
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Irrfan Khan: Mira Nair Remembers Her ‘Namesake’ Star
By BY KATHRYN SHATTUCK from NYT Movies https://ift.tt/2KLyVOR
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कोरोना वर्ल्ड वॉर-3 से कम नहीं है, हम कई चुनौतियों को पार करते आए हैं, हम इसे भी पार कर लेंगे: श्री श्री https://ift.tt/3f5CU71
बुधवार को फिल्म निर्माता-निर्देशक करण जौहर ने ‘हार्ट टू हार्ट’ सीरिज के पहले कार्यक्रम में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर से बातचीत की। कार्यक्रम की शुरुआत अभिनेता इरफान खान को श्रद्धांजलि देकर की। बातचीत में काेरोना, प्रेम, रिश्ते, रूढ़ियों, आध्यात्मिकता और धर्म जैसे विषय आए। श्री श्री ने कहा कोरोना विश्वयुद्ध से कम नहीं है। पढ़िए मुख्य अंश-
जौहर: आपने एक बार कहा था कि आपको दुख तभी होता है, जब दूसरों का दुख देखते हैं?
श्री श्री: दुख हमारे विश्वास का कोर नहीं है। जैसे परमाणु की संरचना होती है। उसके काेर में पॉजिटिव प्रोटोन और न्यूट्रॉन होते हैं। निगेटिव पार्टिकल उसके आसपास घूमते हैं। ऐसे ही हम सब के भीतर खुशी और आनंद है। दुख इसके चारों ओर घूमता रहता है। जब हम खुद काे पहचान लेते हैं, तो पाते हैं कि दुनिया में खुशी दुख से ज्यादा है। दुख गहराई देता है। खुशी विस्तार देती है।
जौहर: धर्म व अध्यात्म में क्या फर्क है।
श्री श्री: आध्यात्म लोगों को जोड़ता है। हम पदार्थ और आत्मा दोनों से मिलकर बने हैं। शरीर, एम्यूनो एसिड, कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन से बना है। आत्मा आनंद, उत्साह, दया, चरित्र, आत्मविश्वास से मिलकर बनी है। काेई भी चीज जो आत्मा को मजबूत करे, वो अध्यात्म है।
जौहर: अध्यात्म का रास्ता संपूर्णता की ओर ले जाता है, लेकिन धर्म के रास्ते में क्या कुछ कमी रह जाती है?
श्री श्री: हां। धर्म जन्म, विधि-विधान, परंपराओं का मामला है, लेकिन अध्यात्म व्यक्तिगत होता है। आध्यात्म सभी धर्म के लोगों को एक साथ ला सकता है। धर्म में कुछ प्रतिबंध और रुकावटें होती हैं। यह कोई बुरी बात भी नहीं है। धर्म को कभी-कभी इसकी जरूरत पड़ती है।
जौहर: कैसे पता चलता है कि दो लोगों में जो प्यार है वो सच्चा है?
श्री श्री: रिश्तों में दो चीजें होती हैं, एक प्यार और दूसरा सम्मान। प्यार दूरियों को नहीं मानता। जबकि सम्मान को कुछ दूरियों की जरूरत होती है। जब दो लोग पास आते हैं तो महसूस होता है कि एक-दूसरे का सम्मान खत्म हो रहा है। तब विवाद सामने आता है। विवादों को प्यार का हिस्सा ही मानना चाहिए।
जौहर: दुनिया कोरोना संकट से गुजर रही है। इसके बारे में क्या कहेंगे?
श्री श्री: कोरोनावायरस वर्ल्ड वॉर-3 से कम नहीं है।हम कई चुनौतियों को पार करके आए हैं। हम इसे भी पार कर लेंगे। खुद पर भरोसा रखिए। योगा कीजिए। मेडिटेशन कीजिए। आपको काफी शांति और ताकत मिलेगी।
श्री श्री ने रोचक तरीके से बताए शब्दों के अपने मायने
- प्यार- प्रकृति।
- शादी- त्याग का तरीका।
- सफेद- क्योंकि उसमें सब रंग शामिल हैं।
- लीडर- हर आदमी के भीतर एक लीडर है और वो आध्यात्मिक है।
- पैशन (जूनून) क्या है? जो भी मैं करता हूं जूनून के साथ करता हूं।
- स्टाइल स्टेटमेंट– कीप इट अप।
- पसंदीदा फिल्म– हर इंसान की कहानी एक फिल्म की तरह है।
- पसंदीदा गीत- मैं हूं मंजिल, मैं हूं सफर भी, मैं ही मुसाफिर हूं… मैं ही मुसाफिर हूं। (खुद का गाना है)
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Coronavirus Briefing: What Happened Today
By BY PATRICK J. LYONS from NYT U.S. https://ift.tt/2xhiE0W
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रथयात्रा पर सस्पेंस, लॉकडाउन बढ़ा तो टूट सकती है 280 साल की परंपरा या बिना भक्तों के निकलेगी रथयात्रा https://ift.tt/3aTi1Z7
लगभग 280 साल में ये पहला मौका होगाजब कोरोना वायरस के चलते रथयात्रा रोकी जा सकती है। ये भी संभव है कि रथयात्रा इस बार बिना भक्तों के निकले।हालांकि, इस पर अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। 3 मई को लॉकडाउन के दूसरे फेज की समाप्ति के बाद ही आगे की स्थिति को देखकर इस पर निर्णय लिया जाएगा।
23 जून को रथ यात्रा निकलनी है। अक्षय तृतीया यानी 26 अप्रैल से इसकी तैयारी भी शुरू हो गई है। मंदिर के भीतर ही अक्षय तृतीया और चंदन यात्रा की परंपराओं के बीच रथ निर्माण की तैयारी शुरू हो गई है। मंदिर के अधिकारियों और पुरोहितों ने गोवर्धन मठ के शंकराचार्य जगतगुरु श्री निश्चलानंद सरस्वती के साथ भी रथयात्रा को लेकर बैठक की है, लेकिन इसमें अभी कोई निर्णय नहीं हो पाया है।
नेशनल लॉकडाउन के चलते पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से पुरी मंदिर बंद है। सारी परंपराएं और विधियां चुनिंदा पूजापंडों के जरिए कराई जा रही है।
- तीन विकल्पों पर विचार
1. यात्रा निरस्त की जाए
अगर लॉकडाउन आगे बढ़ाया जाता है तो यात्रा निरस्त करना ही विकल्प होगा। इसे लेकर भी मंदिर से जुड़े मुक्ति मंडल के कुछ सदस्य तैयार हैं। सदस्यों का मत है कि भगवान भी चाहते हैं कि उनके भक्त सुरक्षित रहें। ऐसे में यात्रा निरस्त करने में कोई दिक्कत नहीं है।
2. पुरी की सीमाएं सील कर यात्रा निकाली जाए
अगर स्थितियां नियंत्रण में रही तो एक विकल्प ये भी है कि पूरे पुरी जिले में सीमाएं सील करके चुनिंदा लोगों और स्थानीय भक्तों के साथ रथयात्रा निकाली जाए। इसका लाइव टेलिकास्ट चैनलों पर किया जाए जिससे बाहर के श्रद्धालु आसानी से रथयात्रा देख सकें। इस पर सहमति बनने की सबसे ज्यादा संभावना है क्योंकि मठ की तरफ से भी इस पर गंभीरता से विचार करने को कहा गया है।
3. मंदिर के भीतर ही हो यात्रा
मंदिर के अंदर ही रथयात्रा की परंपराओं को पूरा किया जाए। जिसमें मठ और मंदिर से जुड़े लोग ही शामिल हो सकें। अभी भी अक्षय तृतीया, चंदन यात्रा और कई उत्सव मंदिर के अंदर ही किए गए हैं। हालांकि, इस पर रजामंदी होने की उम्मीद सबसे कम है ।
- 2504 साल पहले 144 साल तक नहीं हुई थी पूजा
मंदिर के रिकॉर्ड में मौजूद तथ्यों के मुताबिक सबसे पहले 2504 साल पहले आक्रमणकारियों के कारण पूरे 144 सालों तक पूजा और विभिन्न परंपराएं बंद रहीं। इसके बाद आद्य शंकराचार्य ने फिर से इन परंपराओं को शुरू किया था। मंदिर को नया स्वरूप 12वीं शताब्दी का है। तब से अब तक लगातार ये परंपराएं निरंतर जारी हैं।
- 9 दिन में लौटते हैं भगवान जगन्नाथ
भगवान जगन्नाथ की यह रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से आरंभ होती है। यह यात्रा मुख्य मंदिर से शुरू होकर 2 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होती है। जहां भगवान जगन्नाथ सात दिन तक विश्राम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा होती है, जो मुख्य मंदिर पहुंचती है। यह बहुड़ा यात्रा कहलाती है।
- जगन्नाथ रथयात्राः खास बातें
- भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा- तीनों के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं।भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है।
- भगवान जगन्नाथ के रथ के कई नाम हैं जैसे- गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि। रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है, जिनका रंग सफेद होता है। सारथी का नाम दारुक है। रथ पर हनुमानजी और नरसिंह भगवान का प्रतीक होता है।इसके 16 पहिए होते हैं व ऊंचाई साढ़े 13 मीटर तक होती है।
- बलरामजी के रथ का नाम तालध्वज है। इनके रथ पर शिवजी का प्रतीक होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मातलिहोते हैं। यह 13.2 मीटर ऊंचा 14 पहियों का होता है, जो लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है।
- सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। इस पर देवी दुर्गा का प्रतीक मढ़ा जाता है। 12.9 मीटर ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का इस्तेमाल होता है।
- भगवान जगन्नाथ के रथ पर मढ़े घोड़ों का रंग सफेद, सुभद्राजी के रथ पर कॉफी कलर का, जबकि बलरामजी के रथ पर मढ़े गए घोड़ों का रंग नीला होता है।
- बलरामजी के रथ का शिखर लाल-पीला, सुभद्राजी के रथ का शिखर लाल और ग्रे रंग का, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ के शिखर का रंग लाल और हरा होता है।
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ट्रैवल इंडस्ट्री की मुर्दानगी ऐसी कि पर्यटन को उकसाने वाले ही अब लोगों को स्टे-होम का पाठ पढ़ाने को मजबूर हैं https://ift.tt/2ybfLPP
कोरोनावायरस पैंडेमिक से ज़माने भर में सफरबाज़ों की दुनिया उलट-पुलट हो गई है। ट्रैवल इंडस्ट्री में हड़कंप है, सफर बिखर गए हैं और मंज़िलों पर सन्नाटा है। सीज़न में फुल की तख़्ती लगाए एयरबीएनबी, होटल-होमस्टे वीरान हैं; वॉटर-पार्क, एंटरटेनमेंट पार्क, थियेटर, म्युज़ियम, गैलरियां, कैथेड्रल, मंदिर-मस्जिद, मकबरे, कैफे, बार, रेस्टॉरेंटों में मुर्दानगी छायी है। डिज़्नीलैंड ने कर्मचारियों को छुट्टी पर भेज दिया है, पर्यटन को उकसाने वाले ही अब लोगों को #स्टेहोम #ट्रैवलटुमौरो का पाठ पढ़ाने की मजबूरी से गुजर रहे हैं।
वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज़्म काउंसिल ने आखिरकार वो बम गिरा ही दिया जिसका अंदेशा था। डब्ल्यूटीटीसी के मुताबिक, कोरोनावायरस पैंडेमिक के चलते दुनियाभर में ट्रैवल इंडस्ट्री से जुड़ी करीब 10 करोड़ नौकरियां जा सकती हैं और इनमें साढ़े सात करोड़ तो जी20 देशों में होंगी। यानी भारत के पर्यटन उद्योग पर भी भारी खतरा है।
डब्ल्यूटीटीसी की अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी ग्लोरिया ग्वेवारा ने कहा, ‘हालात बहुत कम समय में और तेजी से बिगड़े हैं। हमारे आंकड़ों के मुताबिक, ट्रैवल एंड टूरिज़्म सैक्टर में पिछले एक महीने में ही करीब 2.5 करोड़ नौकरियों पर गाज गिरी है। इस वैश्विक महामारी ने पूरे पर्यटन चक्र का आधार ही चौपट कर डाला है।'
महामारी के चलते लॉकडाउन ने पूरी दुनिया में पर्यटन के पहिए को जाम कर दिया है। एयरलाइंस से लेकर मनी एक्सचेंजर तक और टूरिस्ट गाइड से नेचर पार्कों तक की आमदनी पर ताले लटक गए हैं, और किसी को नहीं मालूम कि यात्राओं की दुनिया पर छायी यह मनहूसियत कब दूर होगी। ग्लोरिया का कहना है, ‘यात्रा संसार में आयी यह रुकावट इसलिए भी गंभीर है क्योंकि ट्रैवल एंड टूरिज़्म सैक्टर वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इसमें सुधार लाए बगैर दुनिया में कहीं भी अर्थव्यवस्था को उबारना आसान नहीं होगा और आने वाले कई सालों तक लाखों लोग आर्थिक और मानसिक तबाही झेलने को अभिशप्त होंगे।'
युनाइटेड नेशंस वर्ल्ड टूरिज़्म ऑर्गेनाइज़ेशन (यूएनडब्ल्यूटीओ) के महासचिव जुराब पोलोलिकाश्विल ने दो टूक कह दिया है- ‘अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सबसे बुरा हाल टूरिज़्म सैक्टर का है। सरकारों को कोविड-19 पैंडेमिक से खतरे में पड़ी आजीविकाओं को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। सिर्फ मीठे अल्फाज़ों से ही नौकरियां नहीं बचायी जा सकेंगी। उन्होंने सरकारों को सलाह दी है कि ‘यात्राओं पर लगी बंदिशों को, जितना जल्दी हटाया जाना सुरक्षित हो, हटा लिया जाना चाहिए।'
लेकिन यह तय है इस धक्के से उबरने में लंबा वक़्त लगेगा और वापसी की रफ्तार भी धीमी होगी। टूरिज़्म जैसे संवेदनशील उद्योग को 9/11 के बाद पुराना रुतबा हासिल करने में दो साल लगे थे। इसी तरह, सार्स और स्वाइन फ्लू ने भी पर्यटन के दौड़ते पहियों में ब्रेक लगायी थी। कोविड-19 इस लिहाज़ से और भी गंभीर परिणाम लेकर आने वाला है।
पोस्ट-कोविड काल में कैसा होगा सफर
यह अभूतपूर्व संकट है, जिसने दुनियाभर में आयोजनों, त्योहारों, यात्रा अनुभवों, सिनेमा, थियेटर, मेलों, प्रदर्शनियों पर रोक लगा दी है। पिछले 5-7 सालों में पर्यटन सैक्टर की उपलब्धियां, कोविड-19 के असर से मटियामेट होने के कगार पर हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि लॉकडाउन हटने के बाद भी विभिन्न देश कब और किसके लिए अपनी सीमाएं खोलेंगे?
शैंगेन बॉर्डर शेष दुनिया के यात्रियों के लिए अगले दो या तीन महीनों में खुलेंगे? अमरीका कब दुनिया के दूसरे महाद्वीपों के ट्रैवलर्स को अपने यहां आने की इजाज़त देगा? क्या कोविड प्रभावित क्षेत्रों के यात्रियों को क्वारंटाइन में रहना होगा? और क्या वे अपने सफर में इस मियाद को भी शामिल रखने का जोखिम उठा पाएंगे?
जब लॉकडाउन खुलेगा, रेलगाड़ियों और जहाज़ों के इंजन फिर घनघनाएंगे, यात्रियों की आमद होगी, उत्सवों के आमंत्रण होंगे तब क्या पहले की तरह सब सामान्य हो जाएगा?
जिंदगी पर फुर्सत और सब्र हावी होंगे
एक प्रमुख लग्ज़री होटल चेन लैज़र होटेल्स में जनरल मैनेजर अजय करीर कहते हैं, ‘पोस्ट कोविड ट्रैवल की दुनिया काफी बदलेगी। बहुत मुमकिन है कि आने वाले समय में लोगों की जिंदगी में फुर्सत और सब्र जैसे पहलू ज्यादा हावी होंगे, भागता-दौड़ता टूरिज़्म कम होगा।
होटल ब्रैंड भी ‘कस्टमर डिलाइट’ पर ज्यादा ज़ोर देंगे, लिहाज़ा ‘कैंसलेशन पॉलिसी’ काफी लचीली रखी जाएगी। स्थापित ब्रैंड्स रेट कम नहीं करेंगे, लेकिन बुकिंग्स के मामले में ऑफर्स और आकर्षक पैकेज ला सकते हैं। बजट होटल या अपने अस्तित्व को लेकर संकट से जूझ रहे मीडियम रेंज होटल टैरिफ घटाने जैसी मजबूरी से गुजरेंगे।'
‘इस बीच, एक और बड़ा शिफ्ट जो होगा वो यह कि किचन ऑपरेशंस में बड़े पैमाने पर तब्दीली होगी। फ्रैश और ऑर्गेनिक फूड पर ज़्यादा ज़ोर होगा। दूरदराज के बाज़ारों से एग्ज़ॉटिक फलों और सब्जियों की खरीद की बजाय स्थानीय उत्पादकों को तरजीह देने का चलन बढ़ेगा।'
ट्रैवल के तरीकों में बदलाव भी लाजमी हैं
ट्रैवल राइटर और ब्लॉगर पुनीतिंदर कौर सिद्धू कहती हैं, ‘यात्राएं कभी मरती नहीं हैं, यह अस्थायी ब्रेक है और मेरे जैसे कितने ही घुमक्कड़ किसी ‘सुरक्षित’ मंजि़ल पर निकलने को बेताब हैं। सुरक्षा के लिहाज़ से मैं बड़े होटलों की बजाय बुटिक, स्टैंडएलॉन और छोटी प्रॉपर्टी को प्राथमिकता दूंगी।
शुरुआत में मास ट्रांसपोर्ट से हर संभव तरीके से दूर रहने की कोशिश होगी, यानी रोड ट्रिपिंग की वापसी होगी। लेकिन कार रेंटल को लेकर बहुत से लोग शुरु में हिचकेंगे और सैल्फ-ड्राइविंग हॉलीडे को पसंद किया जाएगा। यात्राओं की रफ्तार धीमी ज़रूर रहेगी मगर वे बेहतर तरीके से होंगी। ‘स्लो टूरिज़्म’ और ‘बैकयार्ड टूरिज़्म’ बढ़ेगा।'
इस बीच, कई एयरलाइंस भी अगले महीने से आसमानों में उड़ान भरने की अपनी तैयारियों के संकेत दे रही हैं। पैसेंजर टर्मिनलों और हवाई जहाज़ों में क्रू तथा यात्रियों के लिए मास्क लगाना अनिवार्य होगा और जगह-जगह सैनीटाइज़र की व्यवस्था, कॉन्टैक्टलैस वेब एवं मोबाइल चेक-इन, थर्मल स्क्रीनिंग, स्वास्थ्य घोषणा पत्र, अतिरिक्त चेक-इन काउंटर जैसी शर्तें आम होंगी।
यात्रियों के बीच डिस्टेन्सिंग के लिए हर कतार में सीट खाली रखने जैसी शर्त पर फिलहाल स्थिति बहुत साफ नहीं है। ऐसा हुआ तो खाली सीटों के साथ उड़ान भरने पर होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे होगी? क्या टिकटों की कीमतें बढ़ेंगी? या महामारी के डर से घरों में दुबके पैसेंजरों को ललचाने के लिए हवाई खर्च में कटौती की जाएगी?
सवाल बहुत हैं और जवाब समय के गर्भ में छिपे हैं। धीरे-धीरे स्थितियां साफ होंगी मगर इतना तय है कि बेहतर हाइजिन, सैनीटाइज़ेशन, डिस्इंफेक्शन यात्राओं की बहाली का प्रमुख मंत्र रहेगा।
यायावर लेखक और फोटोग्राफर डॉ कायनात काज़ी कहती हैं, ‘जिसके लिए यात्राएं जीने का सामान है, जिसकी रगों में दौड़ती रवानी की तरह है आवारगी, वो और इंतज़ार नहीं कर सकता। कम से कम मैं तो कतई नहीं रुक सकती।
उम्मीद है लॉकडाउन हटने के बाद, घरेलू यात्राओं के रास्ते खुल जाएंगे और मैं फ्लाइट टिकट खरीदने के रोमांच से खुद को रोक नहीं पाऊंगी! अलबत्ता, जब फिर सफर करना शुरू करूंगी तो सावधानियां, सैनीटाइज़र, मास्क और कुछ हद तक सोशल डिस्टेंसिंग की आदतें मेरी हस्ती का सामान बन चुकी होंगी।'
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अमेरिका में 14 साल पहले दो वैज्ञानिकों ने पहली बार बुश सरकार के सामने सोशल डिस्टेंसिंग नीति बनाने का प्रस्ताव रखा था, पर अधिकारियों ने खिल्ली उड़ा दी थी https://ift.tt/35gnqsh
एरिक लिप्टन और जेनिफर स्टीनहाऊर. कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित देश अमेरिका है। अब तक 60 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। यदि 14 साल पहले कुछ वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग कानून (फेडरल पॉलिसी) के प्रस्ताव को खारिज न किया जाता तो...इस मौत की त्रासदी को रोका जा सकता था।
ऐसा (उपरोक्त बातें) अमेरिका के दो वरिष्ठ सरकारी चिकित्सक डॉ. रिर्चड हैशे और डॉ. कार्टर मेकर का कहना है। वर्तमान में डॉ. हैशे कैंसर विशेषज्ञ सलाहकार के तौर व्हाइट हाउस में, जबकि डॉ. मेकर वेटरन्स अफेर्यस विभाग में एक चिकित्सक के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। दोनों ने न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार से अमेरिका में सोशल डिस्टेंसिंग नीति के जन्म और उसके खारिज होने की कहानी को साझा किया।
पढ़िए डॉ. हैशे और डॉ. मेकर की जुबानी...सामाजिक दूरी के जन्म की अनकही कहानी...
- अधिकारियों ने सोशल डिस्टेंसिंग नीति के प्रस्ताव की खिल्ली उड़ाई, कहा- घर में दुबकने से बेहतर है महामारी की दवा खोजी जाए
डॉ. मेकर कहते हैं कि यह करीब 14 साल पहले की बात होगी। मैं और डॉ. हैशे वॉशिंगटन के उपनगरीय स्थित एक बर्गर शॉप में अपने कुछ सहयोगियों के साथ मुलाकात करने गए। वह मुलाकात दरअसल उस (सोशल डिस्टेंसिंग) प्रस्ताव की अंतिम समीक्षा से जुड़ी थी, जिसमें यह तय किया जाना था कि अगली बार अमेरिका पर अगर किसी विनाशकारी महामारी का हमला होता है, तो लोग सामाजिक दूरी बनाएंगे और घर से ही काम करेंगे। जब हमने यह प्रस्ताव पेश किया तो वरिष्ठ अधिकारियों ने न सिर्फ इसे शक की नजर से देखा, बल्कि इस प्रस्ताव की खिल्ली भी उड़ाई। अन्य अमेरिकियों की तरह समीक्षा करने आए अधिकारियों ने भी दवा उद्योग के प्रति आश्वस्त दिखे। उनका जोर किसी भी महामारी से बचने के लिए घरों में दुबक कर बैठ जाने से बेहतर स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करते हुए इलाज के नए तरीके ईजाद करने पर था।
- किसी भी महामारी से बचने का सबसे अच्छा इलाज सोशल डिस्टेंसिंग है, लेकिन इसे अव्यावहारिक और गैर जरूरी बताया गया
डॉ. हैशे कहते हैं कि कोरोना वायरस पूरे विश्व के लिए बिल्कुल नया है। ये कहां से आया है? कैसे रुकेगा? इसका इलाज क्या है? किसी के पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं है। लेकिन एक बात सौ फीसद सही साबित हो गई है कि इसे सोशल डिस्टेंसिंग से ही रोका जा सकता है। जिन देशों में इस पर थोड़ा या ज्यादा काबू पाया गया है, वहां पर यही हथियार अपनाया गया है। किसी भी महामारी से बचने का सबसे अच्छा इलाज सोशल डिस्टेंसिंग ही है। इसमें जान जाने की दर बहुत कम होती है। मैं और डॉ. मेकर इसी बात पर जोर दे रहे थे। जिस सोशल डिस्टेंसिंग से लोग आज परिचित हैं या फिर हो रहे हैं, दरअसल इसे मध्यकाल से ही में अपनाया जा रहा है। 2006-07 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश की पहल पर हमने एक प्रस्ताव रखा था कि देश में अगली संक्रामिक बीमारी से मुकाबला करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग से बेहतर कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता, लेकिन संघीय नौकरशाहों ने तब इसे अव्यावहारिक, गैर जरूरी और राजनीतिक रूप से असंभव (नॉन फिजिबल) कहकर नकार दिया था।
- दोस्त डॉ. ग्लास की 14 वर्षीय बेटी ने स्कूल में सोशल डिस्टेंसिंग पर बनाया था साइंस प्रोजेक्ट उसी से मिला आइडिया
डॉ. मेकर कहते हैं कि इनफ्लुएंजा के नए प्रकोप और टेमीफ्लू जैसी दवा के सभी संक्रामक बीमारियों में कारगर न होने की सच्चाई को देखते हुए डॉ. हैशे और मैं अपनी टीम के साथ बड़े पैमाने के संक्रमण का मुकाबला करने के लिए अन्य तरीके की खोज में लगे हुए थे। उसी दौरान न्यू मैक्सिको स्थित सैंडिया नेशनल लेबोरेट्री में वरिष्ठ वैज्ञानिक रॉबर्ट ग्लास जो कि मेरे अच्छे दोस्त भी हैं, उनसे इस बारे में बात हुई। ग्लास की 14 साल की बेटी लॉरा ने अपने अल्बुकर्क हाईस्कूल में सोशल नेटवर्क का एक प्रोजेक्ट बनाया था। जब डॉ. ग्लास ने उसे देखा, तो उनकी जिज्ञासा अचानक बढ़ गई थी। प्रोजेक्ट के अनुसार स्कूली बच्चे जो कि सामाजिक तानेबाने और स्कूल बसों और कक्षाओं में एक साथ इतनी बारीकी से जुड़े रहते हैं कि महामारी के दौरान वे एक दूसरे के लए संक्रामक फैलाने के परिपूर्ण संवाहक (कंप्लीट कैरिअर) बन सकते हैं। डॉ. ग्लास ने अपनी बेटी के इस प्रोजेक्ट के माध्यम से यह पता लगाया कि इस आपसी जुड़ाव को तोड़कर ही संक्रामिक बीमारी के खतरे को कम किया जा सकता है। उनका अध्ययन चौंकाने वाला था। 10 हजार की आबादी वाले शहर के स्कूलों को बंद करने से सिर्फ 500 लोग संक्रमित हो सकते थे, जबकि सारे स्कूलों को खुला रखने से शहर की आधी आबादी संक्रमित होती। मुझे जब इस अध्ययन का पता चला, तो मैं चकित हो गया। डॉ. हैशे के साथ मैंने क्लास रूम और स्कूल बसों में छात्रों के बीच की दूरी (कम से कम एक मीटर) के बारे में जाना। हमने किसी भी महामारी में नुकसान को कम करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को किस तरह और किस समय लागू किया जाना चाहिए? इस बारे में गहन चर्चा की। वास्तव में यदि डॉ. ग्लास से बात न होती और उनकी बेटी ने अगर प्रोजेक्ट न बनाया होता तो हम सोशल डिस्टेंसिंग प्रस्ताव का ड्राफ्ट तैयार न कर पाते।
- 2001 में बुश ने जान बेरी की किताब ‘द ग्रेट इन्फ्लुएंजा’ पढ़ी थी, जो 1918 के स्पैनिश फ्लू पर केंद्रित थी, इसके बाद वे ठोस नीति बनाना चाहते थे
डॉ. हैशे कहते हैं कि दरअसल, सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर देने की जार्ज बुश की कवायद 2005 की गर्मी में शुरू हुई थी। 2001 में अमेरिका पर आतंकी हमले के बाद वैश्विक आतंकवाद के प्रति आशंकित बुश ने उसी दौरान जान बेरी की किताब ‘द ग्रेट इन्फ्लुएंजा’ पढ़ी, जो 1918 के स्पैनिश फ्लू पर केंद्रित थी। उसी साल विएतनाम में बर्ड फ्लू समेत कई संक्रामिक बीमारियों ने उनकी आशंका को और बढ़ा दी, जिनमें पक्षियों और पशुओं से मनुष्य संक्रमित हो रहे थे। बुश चाहते थे कि किसी भी महामारी से बचने के लिए अमेरिका के पास ठोस रणनीति हो। 2005 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के एक कार्यक्रम में उन्होंने इस पर विस्तार से चर्चा भी की थी। उनके प्रशासन में सोशल डिस्टेंसिंग की धारणा को प्रोत्साहित किया गया। बराक ओबामा प्रशासन ने पांच साल तक इसकी समीक्षा करने के बाद 2017 में इसका डॉक्यूमेंटेशन (दस्तावेजीकरण) किया, लेकिन मौजूदा डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने इस पर गौर नहीं किया। खुद ट्रंप द्वारा कोविड-19 के खतरे को कम करके आंकने और उनकी सरकार द्वारा वायरस की चेतावनी की अनसुनी करने के कारण जब खतरा बहुत अधिक बढ़ गया, और संक्रमण तथा मौत के मामले बढ़ने लगे, तब ट्रंप ने राज्यों को लॉकडाउन (सोशल डिस्टेंसिंग का एक प्रारूप) के लिए प्रोत्साहित किया। 14 साल पहले यदि हमें ‘शटअप’ न किया गया होता जो कि अपमानित करने के लिए बहुत भद्दा शब्द है। तो शायद आज अमेरिका में सोशल डिस्टेंसिंग फेडरल पॉलिसी का रूप ले चुका होता और इसे किसी भी महामारी के दौरान लागू करना लाजमी होता।
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उम्दा इफ्तार इस बार नहीं होंगे, मस्जिदों से बमुश्किल अजानें आएंगी, वहां इबादत नहीं होगी https://ift.tt/3aJTWnG
कहते हैं कश्मीर में एक मौसम रमजान का होता है, और वह सारे मौसमों से ज्यादा खूबसूरत है। कुबूल हो चुकी दुआओं जैसा रमजान। यूं तो कश्मीर में रमजान के आने की आहट वहां के लोकगीतों से पता चलती है, लेकिन इस बार धुन गुमसुम हैं।
सालभर सुरक्षा हालात भले कितने ही खराब रहें, लेकिन रमजान आने तक माकूल होने लगते हैं। कोरोना की वजह से इस बार परेशानी दूसरी है। तय आलीशान इफ्तार अब नहीं होंगे, मस्जिदों से बमुश्किल अजानें आएंगी वहां इबादत नहीं होगी। होंगे तो बस रोजे और घर में बैठे रोजेदार।
घाटी में हर दिन इफ्तार की तैयारियां दोपहर से ही कंडूर यानी स्थानीय कश्मीरी रोटी बनानेवाले की दुकान के सामने जमा होती भीड़ से होती थी। कंडूर स्पेशल ऑर्डर लेता था और लोगों को अपनी कस्टमाइज ब्रेड मिलती थी, गिरदा, ज्यादा घी और बहुत सारी खस-खस या तिल वाली। लेकिन इस साल ऐसा माहौल ही नदारद है।
गलियों और मोहल्लों में जो जश्न था वो भी नहीं है। सिविल लाइन्स की मशहूर फूड स्ट्रीट जहां हर किसी की जेब की हद में आनेवाला सेवन कोर्स कश्मीरी वाजवान मिल जाता था, अभी खाली पड़ा है। इस बार वह सब भी नहीं है जो इफ्तार के बाद जहांगीर चौक के कश्मीरी हाट को रमजान की नाइट लाइफ हर रोज गुलजार करता था। यूं कह सकते हैं कि साल के इकलौते सबके चहेते इस त्यौहार में इफ्तार से सुहूर तक जिस कश्मीरी नाइटलाइफ को सरकार मशहूर करना चाहती थी वह अब सिर्फ भुलाई जा चुकी कहानी भर है।
मोहम्मद रफीक, पुराने शहर के नवाकदल इलाके में मेवों की दुकान चलाते हैं। कहते हैं लॉकडाउन का छोटे व्यापारियों पर बड़ा असर होगा। खासकर उनपर जिनकी सालभर की कमाई रमजान पर निर्भर रहती है। और क्योंकि रमजान में खानेपीने के सामान की जरूरतें बढ़ जाती हैं तो पैनिक बायिंग और सप्लाय कम पड़ने की भी चिंता है।
कश्मीर की मशहूर हजरबल दरगाह हो या फिर खूबसूरत दस्तगीर साहब हर मस्जिद और श्राइन पर इफ्तार के लिए दस्तरख्वान सजाए जाते हैं। सेब, खजूर और किसी पेय के साथ। इस बार इन मस्जिदों से सिर्फ अजानों की आवाजें आ रही हैं। न इबादत की इजाजत है और आलीशान इफ्तार की तो गुंजाइश भी नहीं।
डाउन टाउन में बनी सबसे बड़ी जामा मस्जिद जो यहां आने वालों से आबाद रहती थी, खासतौर पर आखिर जुमा यानी रमजान के आखिरी शुक्रवार के लिए, जब पूरे शहर के कोनों से लोग यहां आते थे इस बार खाली और सूनी पड़ी है।
डल झील के किनारे बनी हजरतबल श्राइन जो मोहम्मद साहब की पवित्र निशानी मुए ए मुकद्दस का घर भी है इन दिनों बंद कर दी गई है।
फिजिकल डिस्टेंसिंग जो कोरोना के वक्त में सबसे अहम है रमजान के रिवाज पर सबसे ज्यादा मुश्किल साबित हो रहा है। अपने इलाके के बुजुर्ग मोहम्मद शाहबन के लिए ये बेहद कठिन वक्त है। उनके मुताबिक मुइजिन को मिलाकर गिनते के चार लोगों को इलाके की मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजत है, जबकि ज्यादातर बंद कर दी गई है। वह कहते हैं, जब हम गले मिलकर अपने रिश्तेदार, दोस्त और आसपड़ोसियों को मुबारकबाद देना चाहते हैं उस वक्त हमें हाथ मिलाने की भी मनाही है। उनका मानना है कि यह हमारी रूह पर असर डाल रहा है।
जकात या सदका यानी चैरिटी इस महीने का अहम हिस्सा है। मुस्लिम धर्म में जकात और सदका जरूरी माना जाता है। इसे लेनेवाले उम्मीद लिए दरवाजों तक आते हैं। लेकिन इस बार दरवाजों पर ताले हैं। गलियों में सिर्फ तेज हवाओं की आवाजें आती हैं।
घाटी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएमएचएस के रजिस्ट्रार डॉक्टर खावर खान कहते हैं जरूरत है कि मौलवी और मौलाना को आगे आकर लोगों को इक्ट्ठा होने और अपनी सेहत का ख्याल रखने की हिदायत देनी चाहिए। शायद लोग उनकी बात सबसे ज्यादा मानें।
72 साल की नाजिया बानो पुराने शहर हब्बाकदल में रहती हैं। कहती हैं बचपन में वह अपनी सहेलियों के साथ रमजान में एक दूसरे के घर गाना गाने जाया करती थीं। इफ्तार से पहले नाच-गाना होता था और वह कश्मीरी डांस रऊफ भी करतीं थीं। अब सब रिवायतें और रिवाज बदल गए हैं। अब ये भी नहीं मालूम की हमारा हमसाया कौन है और पास के घर में कितने लोग रहते हैं।
मशहूर इतिहासकार जरीफ अहमद जरीफ कहते हैं लोगों की लाइफस्टाइल बदल रही है। पहले सुहूर की नमाज पढ़ने मर्द और औरतें एक साथ पुराने शहर बोहरी कदल में बनी खानख्वाह ए मौला मस्जिद जाते थे। बेटियां खेतों में आकर रऊफ करतीं थी। अब आदतें भी बदल गई हैं और माहौल भी।
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हमारे देश में सवाल करना बदतमीजी मानी जाती है, सवाल वाली फिल्मों के खरीदार नहीं मिलते, ये बात खलती है: इरफान https://ift.tt/3f32lG1
अभिनेता इरफान ने दुनिया को अलविदा कह दिया। रुखसती से पहले उनका आखिरी इंटरव्यू दैनिक भास्कर ने किया था। खराब तबीयत के चलते वह सीधे बात तो नहीं कर पा रहे थे, पर उन्होंने सवाल मंगवा कर उनके जवाब दिए थे। इसमें उन्होंने अपनी जिंदगी के फलसफे, सह कलाकारों और अपनी आखिरी फिल्म अंग्रेजी मीडियम पर ज्यादा बात की थी। ये इंटरव्यू अमित कर्ण ने किया था। पढ़ें...
Q. आज की तारीख में फिल्ममेकिंग के कौन से पहलू आप को इंस्पायर कर रहे हैं? हाल की किन फिल्मों ने आप को सरप्राइज किया है? और किन तकनीकों और स्टोरीटेलिंग के तरीकों से बॉलीवुड को लैस होते देखना चाहेंगे?
आज के तारीख में नए चेहरों का आना और उनका छा जाना बहुत कमाल की बात है। अलग कहानियों का महत्वपूर्ण स्थान है। बिना फूहड़ हुए फिल्में एंटरटेनिंग बन रही हैं, यह बड़ी बात है। यह अहम हासिल है हमारे इंडस्ट्री के लिए। हॉलीवुड में एक बहुत खास बात है कि वहां फार्मूला फिल्में भी बनती हैं तो वे सवाल करती हैं। हमारे देश में सवाल करना आज भी बदतमीजी मानी जाती है। सवाल करने वाली डॉक्यूमेंट्री, फिल्में अगर बनाई भी जाएं तो उनके खरीदार नहीं है। यह कमी तो खलती है।
Q.देश दुनिया की शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजी लैंग्वेज की गिरफ्त में हैं। इससे हमारी शिक्षा व्यवस्था पर क्या असर पड़ा है। क्या हम उस गिरफ्त से अलग होते नजर आ रहे हैं?
हम अंग्रेजी की गिरफ्त में हैं, इसे नकार तो नहीं सकते। पर आत्मसम्मान भाषा से तय नहीं होता। अंग्रेजी जान लेने से मैं ज्यादा संवेदनशील हो जाऊंगा या अच्छा साहित्यकार या कलाकार बन जाऊंगा, ऐसा नहीं है। मगर हम इस बात को भी नकार नहीं सकते कि हिंदुस्तान में गलत अंग्रेजी हमारे रुतबे को तहस-नहस करती है। अंग्रेजी जानना बहुत अच्छी बात है, पर उसे मापदंड बनाकर किसी को आंकना गलत है। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि अंग्रेजी का असर खत्म हो रहा है। मगर हां बदलाव तो आ रहा है।
Q.मतलब अंग्रेजी कमजोर होने के चलते, जो कॉम्प्लेक्स रहा करता था वह कम हुआ है?
जी हां। मुझे अब पेन का उच्चारण पैण करने पर इतनी शर्मिंदगी नहीं होती, जितनी दस साल पहले हुआ करती थी। क्योंकि अमेरिका-इंग्लैंड के अलावा ऐसे कई देश हैं, जो शायद हमें याद ना रहते हों पर वह सब अपनी मातृभाषा से शर्मसार नहीं होते।
Q.अंग्रेजी मीडियम में कौन से रंग हैं, जो इसे पिछली फिल्म से अलग करते हैं?
हिंदी मीडियम से तो बिल्कुल अलग है अंग्रेजी मीडियम। एक बाप है जो बस दोनों फिल्मों में कॉमन है। पर दोनों फिल्मों की पृष्ठभूमि बिल्कुल अलग है। एक दिल्ली के चांदनी चौक में ओरिजिनल मनीष मल्होत्रा की कॉपी कर रहा था। वह दिल्ली-6 की गलियों से विस्थापित होकर पॉश कॉलोनी में रहने की विवशता पर थी। वह भी अपने बच्चे की एडमिशन के लिए।
Q.एक और कॉमन चीज है कि यह भी हल्के-फुल्के अंदाज में ही कुछ गहरा कहना चाहती है?
जी हां। अंग्रेजी मीडियम तो राजस्थान का रंग लिए हुए है। कहानी तो चिड़ियों के उड़ान की तरह है। आप खाना देते रहें तो मुंडेर पर वापस लौटना है। यह चिड़ा और चिडुते की कहानी है। इसमें शैली भी अलग रखी गई है। हल्के-फुल्के अंदाज में कुछ कहने की कोशिश की गई है। जैसा मैंने पहले भी कहा था। यह भी हंसाएगी, रुलाएगी और फिर हंसाएगी। रोते-रोते हंसने का मजा ही कुछ और है ना।
Q.नवाज के साथ द लंचबॉक्स में आप की केमिस्ट्री और हिंदी मीडियम से दीपक डोबरियाल के संग का साथ दोनों की कॉमेडी को आप को कैसे देखते हैं? अपने जीवन में किन कुछ कलाकारों से आप को सीखने सिखाने को मिला। कोई वाकया शेयर कर सकें...
नवाज बहुत ही बेहतरीन अदाकार हैं। दीपक और मेरा साथ हिंदी मीडियम में भी था और अब भी है। दीपक के साथ इंप्रोवाइजेशन बहुत होता है। जुगलबंदी कह सकते हैं इसे। कितना भी अच्छा शॉट दो वह कैच पकड़ लेता है।
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अमेरिका के सबसे बड़े मॉल ऑपरेटर ने कहा- कल से 10 राज्यों में खुलेंगे 49 मॉल https://ift.tt/35jhYov
(सपना माहेश्वरी और माइकल कोकरी)कोरोनावायरस महामारी ने अब तक सबसे ज्यादा तबाही अमेरिका में मचाई है। यहां संक्रमित लोगों की संख्या 10 लाख के पार हो गई है। मरने वालों का आंकड़ा भी 60 हजार के करीब है। लेकिन, अमेरिका महामारी से जंग के बीच अपनी अर्थव्यवस्था को भी खोलने की कोशिश में लगा है। देश के सबसे बड़े मॉल ऑपरेटर सिमन प्रॉपर्टी ग्रुप ने कहा है कि वह शुक्रवार से करीब 10 राज्यों में अपने मॉल खोलने की शुरुआत कर रहा है। यह ग्रुप इन राज्यों में कुल 10 मॉल खोलेगा।
गाइडलाइन भी तैयार
सिमन प्रॉपर्टी ग्रुप ने मॉल खोलने को लेकर अपनीगाइडलाइन भी तैयार कर ली है। मॉल के सिक्युरिटी ऑफिसर्स और यहां काम करने वाले कर्मचारी ग्राहकों को सोशल डिस्टेंसिंग और हाइजीन के बारे में नियमित तौर पर बताते रहेंगे। मॉल के अंदर खेलने वाले एरिया और पीने के पानी के नल फिलहाल बंद रहेंगे। वॉशरूम में हर एक सिंक के बाद दूसरे सिंक पर टेप लगा होगा। यानी अगर कोई एक सिंक चालू है तो उसके ठीक पास वाला सिंक बंद रहेगा। यूरिनल के साथ भी ऐसा ही किया जाएगा। ग्रुप ने अपनी इस योजना का डॉक्यूमेंट 27 अप्रैल को एक मेमो के जरिए अथॉरिटीज तक पहुंचाया है।
योजना की सफलता रिटेलर्स और उपभोक्ताओं के ऊपर भी निर्भर
हालांकि, इस योजना की सफलता मॉल ऑपरेटर के साथ-साथ रिटेलर्स और उपभोक्ताओं के ऊपर भी निर्भर करेगी। यह देखना है कि मॉल खुलने के बाद कितने दुकानदार अपनी दुकानें खोलते हैं और खरीदारी के लिए कितने लोग वहां पहुंचते हैं। इन मॉल्स में दुकानों की चेन चलाने वाली कंपनी गैप ने कहा है कि वह इस हफ्ते के आखिर तक अपनी दुकानें नहीं खोलेगी। एक अन्य बड़ी किराएदार कंपनी मैकीज ने भी कहा है कि उसकी दुकानें फिलहाल नहीं खुलेंगी।
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46% लोग भीड़ वाली जगहों पर नहीं जाएंगे, 51% को हेल्थकेयर सुधरने की उम्मीद: रिपोर्ट https://ift.tt/2VPbVop
कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन की वजह से दुनिया में करीब 400 करोड़ लोग अपने घरों में कैद हैं। 31 लाख से ज्यादा मरीज और दो लाख से ज्यादा मौतेंहोने के बावजूद अभी तक कोरोना का कोई वैक्सीन या इलाज नहीं खोजा जा सका है। ऐसे में लॉकडाउन कब और कैसे खुलेगा, इसे लेकर कई तरह की आशंकाएं हैं।
इसी मामले परग्लोबल डेटा एजेंसी स्टेटिस्टा ने कोविड-19 बैरोमीटर जारी किया है। इसके जरिए यह जानने की कोशिश की गई है कि कोरोना संकट के बाद हमारी जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा, रोजमर्रा की जिंदगी में क्या-क्या बदलाव आ सकते हैं। 49 फीसदी लोगों ने कहा है कि वे भीड़भाड़ वाली जगहों पर नहीं जाएंगे। 51 फीसदी ने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की उम्मीद जताई है।
बैरोमीटर अमेरिका को ध्यान में रखकर बनाया गया
रिपोर्ट के मुताबिक, यह बैरोमीटर अमेरिका को ध्यान में रखकर बनाया गया है, लेकिन इसे वैश्विक स्तर यानी दुनिया परभी लागू किया जा सकता है। 10 में 4 लोगों को उम्मीद है कि कोरोना संकट के बाद वर्क फ्रॉम होम का चलन बढ़ेगा। 50% लोगों ने कहा कि वे जब भी बाहर जाएंगे, तो बिना मास्क के नहीं जाएंगे।
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डॉक्टर ने अपने समर्पण से कई कोरोना पीड़ितों को ठीक किया, दूसरों का दर्द देखा नहीं जाता था, आखिर में जान दे दी https://ift.tt/2KKqEdZ
(अली वाटकिंस, माइकल रोथफेल्ड)अमेरिका में कई काेरोना वायरस मरीजों का इलाज कर चुकी एक डॉक्टर ने जान दे दी। मरीजों का इलाज करते-करते वो खुद इनफेक्टेड हो गईं थीं। डॉक्टर लोर्ना एम ब्रीन की मौत दरअसल,डाॅक्टरों पर कोराेना के मानसिक असर को सामने ले आई है। डॉक्टर ब्रीन न्यूयॉर्क के प्रेस्बिटेरियन एलन अस्पताल में इमरजेंसी डिपार्टमेंट की मेडिकल डायरेक्टर थीं। 200 बेड के इस अस्पताल में 170 कोरोना पीड़ित मरीजों का इलाज किया जा रहा है।
डॉक्टर लोर्नाकाे कोई मानसिक बीमारी नहीं थी
डॉ ब्रीन के पिता डॉ फिलिप ने बताया कि लोर्ना ने कोरोना मरीजों के डरावने मंजर देखे। वो अपना काम पूरी लगन से कर रही थीं। कोरोना संक्रमण से ठीक होकर वह घर तो आ गईं, लेकिन कुछ दिनों बाद वापस अस्पताल जाने लगीं। फिर हमने उन्हें रोका और उसे चार्लोट्सविले ले आए। 49 साल की लोर्ना काे कोई मानसिक बीमारी नहीं थी। उन्होंने मुझसे कहा था कि कुछ अजीब और अलग लग रहा है। वो निराश लग रहीं थीं। मुझे ऐसा लगा कि कुछ गलत हो रहा है। उन्होंनेमुझे बताया था कि मरीज अस्पताल के सामने एम्बुलेंस से उतारने से पहले ही दम तोड़ रहे हैं।
अस्पताल ने कहा- डॉ लोर्नाअसली हीरो
डॉक्टर लोर्ना कोरोनावायरस से लड़ रहे लोगों की अग्रिम पंक्ति में थीं। अस्पताल ने डॉ ब्रीन को एक असली हीरो बताया है। अस्पताल ने बयान में कहा-डॉ. लोर्ना ने बेहद मुश्किल वक्त पर लोगों का इलाज करते हुए उच्चतम आदर्शों का प्रदर्शन किया।यह मौत हमारे सामने कई सवाल खड़े करती है, जिनके जवाब हमें तलाश करने हैं।
कोरोना ने डॉक्टर्स के लिए मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां पैदा कीं
न्यूयॉर्क-प्रेस्बिटेरियन ब्रुकलिन मेथोडिस्ट अस्पताल में क्वॉलिटीकेयर के वाइस चेयरमैन डॉक्टर लॉरेंस ए मेलनिकर कहते हैं, “कोरोनोवायरस ने पूरे न्यूयॉर्क में इमरजेंसी डॉक्टर्स के लिए मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां पैदा की हैं। वैसे डॉक्टर हमेशा हर तरह की त्रासदी से निपटने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन उन्हें खुद बीमार होने या उनकी वजह से परिवार के संक्रमित हाेने की इतनी चिंता नहीं होती, जैसे कोविड के मामले में है।”
खुशमिजाज और मिलनसार
डॉ ब्रीन के दोस्त बताते हैं कि वह न्यूयॉर्क स्की क्लब की सदस्य थीं। बहुत धार्मिक थीं।हफ्ते में एक बार बुजुर्ग लोगों की सेवा के लिए भी जाती थीं। सालसा डांस बेहद पसंद था। अपने आसपास के माहौल काे जीवंत बनाए रखती थीं। बतौर डॉक्टर जो सम्मान और मुकाम उन्होंने हासिल किया, वो तभी पाया जा सकता है, जब आप बहुत प्रतिभाशाली हों।
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इंसानी कोशिका को पूरी तरह घेरकर उसमे घुस जाता है कोरोनावायरस, 20 लाख गुना बड़ा करके उतारी तस्वीरों से पता चला https://ift.tt/2Sk2FGO
अमेरिका और ब्राजील के दो संस्थानों ने कोविड-19 फैलाने वाले कोरोनावायरस SARS-COV-2 की स्पष्ट तस्वीरें उतारे में सफलता पाई हैं। इन तस्वीरों को इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप की मदद से उतारा गया है। इसके लिए माइक्रोस्कोप में वायरस के संक्रमण की स्थिति को 20 लाख गुना बड़ा करके देखा गया जिसमें पता चला कि किस तरह से यह वायरस इंसानी कोशिका को पूरी तरह घेर लेता है और उसके अंदर घुस जाता है। इसके बार वायरसउसके ही जीवन रस औरप्रोटीन के साथ जुड़कर कोशिका कोनष्ट होने पर मजबूर करदेता है।
ये नईतस्वीरें अमेरिका के मैरीलैंड स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिसीज (एनआईएआईडी) इंटीग्रेटेड रिसर्च फैसिलिटी (आईआरएफ) फोर्ट फोर्ट्रिक, नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट(एनआईएच) और ब्राजील के ओसवाल्डो क्रूजफाउंडेशन के वैज्ञानिकों ने अलग-अलग प्रयोगों के दौरान उतारी हैं। भारत में भी बीते महीनेनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के शोधकर्ताओं ने कोरोनावायरस की पहली तस्वीरें ली हैं।
वैज्ञानिकों नेट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करते हुए, लेंस की मदद से ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जिससे सैम्पल को बीस लाख गुना बढ़ाया जा सकता है। इसके लिएटीम ने सेल कल्चर बनाया और फिर कोशिकाओं को वायरस से संक्रमित होनेकी प्रक्रिया को इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की मदद से देखा और वायरस के संक्रमण के तरीके कोसमझा।
तस्वीरों से समझते हैं कोरोना वायरस और उसका आक्रमण
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55% सैंपल पॉजिटिव आ रहे थे, अब 6%; 286 सैंपल में से 19 पॉजिटिव, 3 की मौत https://ift.tt/2VNE3br
(नीता सिसौदिया) मध्य प्रदेश मेंकोरोना के हॉटस्पॉट बने इंदौर के लिए बुधवार को राहतभरी खबर आई। शहर में 286 सैंपल में 19 नए पॉजिटिव मरीज मिले हैं। 267 मरीजों की रिपोर्ट निगेटिव आई है। यानी पॉजिटिव रेट 6.64% रह गया। इसके साथ ही कुल मरीजों की संख्या 1485 हो गई है। हालांकि, इसी दौरान तीन और लोगों की मौत भी हुई है। तीनों मृतक पुरुष हैं। इनकी उम्र 40 से 69 वर्ष के बीच है। लॉकडाउन के जिस दूसरे चरण ने इंदौर की चिंता बढ़ाई थी, उसी के अंतिम दौर में मरीजों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है।
44 मरीज डिस्चार्ज
दूसरे चरण की शुरुआत में कुल सैंपल में पॉजिटिव की संख्या 55.59 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। वो अब घटने लगी है। इसी बीच, बुधवार को तीन अस्पतालों से 44 मरीजों को डिस्चार्ज कर दिया गया। अरबिंदो अस्पताल से 38, चोइथराम से 5 और एमआर टीबी अस्पताल से एक मरीज घर रवाना हुआ। सुदामा नगर निवासी श्रद्धा शर्मा ने बताया कि वो 16 अप्रैल को अरबिंदो अस्पताल में भर्ती हुई थीं। डॉक्टर्स, नर्स और स्टाॅफ की सेवा से स्वस्थ हुईं। कैलाश लहरी, सुरभि समाधिया, प्रवीण पोद्दार, संजू शर्मा औरजय रांका भी डिस्चार्ज हुए।
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